सिद्धान्त अथवा सकारात्मक स्थिति के साथ ही गति प्रमाणित होता है । मानव की स्थिति गति सुस्पष्ट है । एक जगह से दूसरी जगह जाते हुए मानव का होना भी, स्थानांतरण होना भी दिखाई पड़ता है । इसके साथ-साथ परावर्तन-प्रत्यावर्तन क्रिया भी संपादित होती रहती है ।

ऐसे परावर्तन-प्रत्यावर्तन को हम पहचानने, पहचानवाने के रुप में समझने, समझने के रुप में सीखने, सीखने के रुप में हम अपने में होना पाते हैं । इसमें से समझने समझाने का जो भाग है, इसी में परावर्तन प्रत्यावर्तन सुस्पष्ट होता है । प्रत्यावर्तन विधि से समझते है, समझाने की विधि से परावर्तित होते हैं । मानव के लिए जितनी भी क्रियायें हैं, वे कायिक, वाचिक, मानसिक, कृत, कारित, अनुमोदित भेदों से है । इन सबके मूल में परावर्तन, परावर्तन के मूल में प्रत्यावर्तन, प्रत्यावर्तन के वैभव में परावर्तन क्रिया अनूस्युत विधि से संपादित होती है । परावर्तन की सार्थकता तभी संतोषजनक हो पायी है, जब समझने के लिए इच्छुक मानव हो । ऐसे मानव के साथ ही परावर्तन क्रिया अर्थात् समझे हुए को समझाने की क्रिया सार्थक होता हुआ देखने को मिलता है । परावर्तन की सार्थकता में इतना सुनिश्चित होना आवश्यक है कि परावर्तन क्रम, कार्य, व्यवहार, फल, प्रयोजन संगत हो । कार्य में उत्पादन का आधार, व्यवहार में न्याय का आधार, फलन में मानवाकाँक्षा के आधार, प्रयोजन में जीवन लक्ष्य के आधार पर सार्थक होना पाया जाता है । इनकी अर्थात् उत्पादन, न्याय, मानवाकाँक्षा, जीवनाकाँक्षा सार्थक होने की स्वीकृति हर मानव में सहज है । यह मुद्दा पहले स्पष्ट हो चुका है ।

हर मानव का समझदार होना एक साधारण घटना है, सामान्य घटना है, सबसे वांछित घटना है । समझदार होने के फलन में ही अन्य सभी कड़ियाँ अपने आप जुड़ती हैं । समझदारी के साथ ही फल परिणाम तृप्ति का स्रोत बनना आवश्यक है । फल परिणाम मानवाकाँक्षा सार्थक होने से है, समझदारी का प्रमाण भी मानवाकाँक्षा के सार्थक होने से है, मानव का सम्पूर्ण कार्य व्यवहार की सार्थकता भी मानवाकाँक्षा का सार्थक होना है । मानव की सम्पूर्ण व्यवस्था प्रक्रिया भी मानवाकाँक्षा के सार्थक होने से है । मानवीय व्यवस्था, मानवीय शिक्षा, मानव के सोच विचार की सार्थकता यदि कुछ है तो वह केवल मानवाकाँक्षा पूरा होने से है । इसमें मुख्य बात यही है अर्थात् यह सब कहने का मुख्य मुद्दा यही है कि मानवाकाँक्षा पूरा होने से जीवनाकाँक्षा पूरा होता ही है ।

परावर्तन में इस बात का जिक्र आ चुका है कि समझे हुए को समझाना, सीखे हुए को सिखाना, किये हुए को कराना । इसके अलावा कोई चीज होता है, तो वह है अनुमोदन, अनुमोदन भी

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