इन तीन अर्थों में सार्थक होना पाया जाता है । इस ढंग से कृत, कारित, अनुमोदित विधि से मानव परावर्तित होता है । मानव परावर्तित होने से तात्पर्य ज्ञान, विवेक, विज्ञान संपन्नता ही मानव का मूल, मौलिक स्वरुप है । यही परावर्तित होती है । परावर्तित होने का तात्पर्य ऊपर कहे गये कृत, कारित, अनुमोदित विधियों से प्रमाणित होने से ही है । ऐसे परावर्तन क्रम में ही अखंड समाज, सार्वभौम व्यवस्था में मानव का मूल्यांकन हो जाता है । अखंड समाज विधा में मानव आवश्यकता का ख्याति हो जाता है अथवा सूत्र व्यवस्था हो जाता है । तीसरी विधि से, अर्थ व्याख्या हो जाता है । मानव आवश्यकता के अर्थ में परिवार व्यवस्था से सार्वभौम व्यवस्था में मानव की बात स्पष्ट हो चुकी है । मानव रुपी अर्थ इसी क्रम में प्रमाणित हो जाता है, सार्थक हो जाता है । इसी के लिए सम्पूर्ण ज्ञान, विवेक, विज्ञान सूत्र से व्याख्या तक पहुँचता है । इसमें से सहअस्तित्व रुपी बीज आँकाक्षा के रुप में, ज्ञान विवेक विज्ञान सूत्र के रुप में, कार्य व्यवहार और व्यवस्था व्याख्या के रुप में संपन्न होता हुआ दिखता है । यही जागृत मानव परंपरा का प्रमाण है । अतएव मानव सहज जागृत प्रवृत्ति सुस्पष्ट हो गया । इसे स्पष्ट करना ही प्रमाण, प्रमाण के लिए जितने भी कार्य व्यवहार करेगें, ये सब परावर्तन है । परावर्तन के लक्ष्य पूर्ति प्रमाणित हो जाती है, आशय पूर्ति पूरी है । सर्वशुभ सुन्दर समाधानपूर्ण अपेक्षा सार्थक हो जाती है ।

सुखी होना आशय है । मानव लक्ष्य समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व में जीता हुआ प्रमाण है । अपेक्षा सार्वभौमता और अखंडता ही है । आशय, लक्ष्य, अपेक्षा अपने आप में पूरक विधि से सार्थक हो जाते हैं । लक्ष्य जब पूरा होता है, समाधान सुख रुप में; समाधान समृद्धि, शान्ति के रुप में; समाधान समृद्धि, अभय, संतोष के रुप में और समाधान समृद्धि अभय सहअस्तित्व, आनन्द के रुप में अनुभव होता है । इसी क्रम में सहअस्तित्व में अनुभव, अखण्ड समाज, सार्वभौम व्यवस्था में अनुभव, आवश्यकता से अधिक उत्पादन में स्वतंत्रता का अनुभव, हर गतिविधि में समाधान का अनुभव ही सुख, शान्ति, संतोष, आनन्द के रुप में ख्यात होना देखा गया है । इसे हर आदमी अपने अनुभव की कसौटी में जाँच सकता है । इसे जीने के उपरान्त ही हम फल परिणाम को सत्यापित किये हैं । लोक व्यापीकरण करने में ही सन्तुष्टि है ।

हर व्यक्ति अनुभवगामी विधि से अध्ययन, शोध, परीक्षण, निरीक्षण पूर्वक अनुभव और परावर्तन में अनुभवमूलक प्रणाली से मानवाकाँक्षाओं को प्रमाणित करना हो जाता है । इस प्रकार अध्ययन, बोध, अनुभवमूलक विधि से अनुभवमूलक प्रणाली पूर्वक मानवाकाँक्षा के अर्थ में जीना बन जाता है । यही अध्ययन का मूल उद्देश्य है । अनुभव मूलक विधि से जीने वाले

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