व्यक्तियों की संख्या में वृद्धि होने के क्रम में ही अखण्ड समाज, सार्वभौम व्यवस्था का प्रमाण होना, क्रम से समाधान समृद्धि अभय सहअस्तित्व में प्रमाण हो जाना, हर जागृत व्यक्ति का पहचान हो पाता है । इतना ही नहीं हर नर नारी जागृत होना चाहते ही हैं, इसीलिए जागृत होने योग्य शिक्षा का लोक व्यापीकरण करना ही एक मात्र उपाय है । मानवीय शिक्षा में मानव में, से, के लिए आवश्यकीय सभी मुद्दे अध्ययन के लिए वस्तु है ।
इस ढंग से मानव परंपरा उत्तरोत्तर जागृत होने के रुप में परावर्तित रहता ही है । प्रत्यावर्तन में सुख, शान्ति, संतोष, आनन्द से सराबोर रहता ही है । मानवाकाँक्षा अपने आप में कार्य व्यवहार व्यवस्था विधि से प्रमाणित होता ही है । यही जीने का तात्पर्य है । अर्थात् कार्य, लक्ष्य और प्रयोजन प्रमाण होना, उसकी निरंतरता बने रहना ही जीने का तात्पर्य है ।
मानव कुल में से ज्ञान विज्ञान विवेक प्रमाणित होता है । यही निर्विवाद स्वत्व का स्वरुप है । ऐसे स्वत्व परावर्तन में सार्थकता का आंकलन और स्वीकृति के आधार पर ही स्वत्व में आंकलन बनता ही रहता है, निरंतर श्रेष्ठता की ओर हम अपने में से प्रमाणित होना बनता ही है । एक बार प्रमाणित होने के बाद प्रमाण विधि में श्रेष्ठता की श्रृंखला बन जाती है । यह प्रत्यावर्तन में दृढ़ता का सूत्र बनता है । मानव में प्रमाण विधि से ही सार्थक पूंजी, प्रत्यावर्तन विधि से निरंतर प्रखर और वृद्धि होते ही जाता है । वृद्धि मतलब आज एक मुद्दे में प्रमाणित हुए, कल दो मुद्दे में, परसों तीन मुद्दे में प्रमाणित होने की स्वीकृति समाहित होती जाती है । यह प्रत्यावर्तन क्रिया बोध और अनुभव में समाहित होते रहने से है अर्थात् स्वीकृति रहने में है, यही पुनःश्च परावर्तन के लिए पूंजी बना रहता है । ऐसे अनुभव ही बोध में समाधान के रुप में अवस्थित रहता है । फलस्वरूप परावर्तन में हम समाधान को प्रमाणित कर पाते हैं । इस विधि से परावर्तन क्रिया अनुभव के लिए नित्य स्रोत होना प्रत्यावर्तन विधि से स्पष्ट होता है । जागृति को प्रमाणित करने के लिए यही सूत्र और व्याख्या है । हर प्रत्यावर्तन अनुभव सूत्र है । हर परावर्तन अनुभव सूत्र की व्याख्या है । इस विधि से मानव के स्वरुप का प्रमाण प्रत्यावर्तन में ज्ञान विज्ञान विवेक के रुप में, परावर्तन में कार्य व्यवहार व्यवस्था में भागीदारी के रुप में प्रमाणित होता है । यही जागृत परंपरा है । पीढ़ी से पीढ़ी इसको बनाये रखना हर मानव का कर्त्तव्य और दायित्व है ।
परावर्तन प्रत्यावर्तन क्रिया के संबंध में काफी अध्ययन संभव हो गया है । इसी क्रम में परंपरा में चेतना विकास मूल्य शिक्षा-संस्कार एक अनूस्युत क्रिया है । परावर्तन विधि से अध्यापन, प्रत्यावर्तन विधि से अध्ययन होना पाया जाता है । अध्यापन एक श्रुति अथवा भाषा होना सुस्पष्ट