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मानव-कुल के साथ स्नेह करने की क्षमता ही विश्वास एवं संतोष की निरन्तरता है । यही अग्रिम विकास के लिये उत्साह एवं प्रवर्तन भी है ।

विश्वासविहीन संबंध सफल नहीं है । संबंध रहित स्थिति में कर्म सिद्धि नहीं है ।

प्रत्येक सामाजिक मूल्य का निर्वाह विश्वास पूर्वक ही सफल हुआ है ।

न्यायपूर्ण व्यवहार, समाधान पूर्ण विचार, एवं सत्यानुभूतिपूर्ण जीवन में क्लेशों का अत्याभाव होता है, यही सर्वमंगल है ।

विवेकानुगामी विज्ञान के प्रयोग से ही मानव की प्रत्येक अवस्था का जीवन सर्वांग सुन्दर है । यही सर्व मानव कल्याणकारी कर्म-प्रवृत्ति एवं उपलब्धि है, यही सर्वमंगल है ।

ज्ञान सम्मत विवेक व विज्ञान सम्पन्न कर्म परम्परा ही लोकमंगल कर्म है । यही मानव की चिर आशा, आकाँक्षा, आवश्यकता एवं अवसर है ।

“सर्व शुभ हो, नित्य शुभ हो”

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