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दिव्यात्माओं की उपासना में विवेक पूर्ण विज्ञान, तप (दृढ़ निष्ठा), निश्चय, निर्णय तथा संकल्प की क्षमता उपलब्ध होती है । यही उनकी उपासना का प्रत्यक्ष फल है । देवात्माओं की उपासना से अर्धविवेक, विज्ञान, धैर्य, साहस, स्नेह, विश्वास, त्याग तथा जीवन-क्रियाकलाप में नियंत्रण, संयम पाया जाता है यही देव उपासना की प्रत्यक्ष उपलब्धि हैं । भूतात्माओं की उपासना से अविवेक पूर्ण विज्ञान, अधैर्य, दुस्साहस, राग द्वेष, सशंकता तथा अनियंत्रित जीवन-क्रियाकलाप पाया जाता है । यही तीनों उपासनाओं के फलस्वरूप ही क्रम से सजगता सतर्कतापूर्ण, जागृति सतर्कतापूर्ण एवं अजागृति सशंकता सहित स्थितियों में दृष्टव्य है । यही निर्भ्रान्त, भ्रान्ताभ्रांत एवं भ्रान्त अवस्थायें हैं ।

रासायनिक द्रव्यों की संगठित शरीर-रचना जिसमें मेधस समाहित रहता है उसी से मांस पदार्थ है और वनस्पतियों में से शाक पदार्थ उपलब्ध है । इन दोनों में रासायनिक द्रव्य अधिकांशतः समान पाया जाता है । ऐसे रासायनिक द्रव्य की समानता रहते हुए भी मांस-शरीर-रचना-यंत्रीकरण तथा उसका उपयोग, शाक बिम्ब की रचना-प्रक्रिया व उपयोग में मौलिक अन्तर है । जो निम्नांकित है :-

मांस-शरीर

शाक बिम्ब

1. बीज - अन्डज, पिन्डज

उद्भिज

2. प्रयोजन - चैतन्य इकाई सहज आस्वादन एवं स्वागत प्रक्रिया माध्यम

औषधि एवं आहार का माध्यम (जीव एवं मानव का)

3. यंत्रीकरण - मेधस सहित शरीर रचना

मेधसविहीन रूप-रचना

4. उपयोगिता - चैतन्य इकाई का संचालन पूर्वक आस्वादन क्रिया का माध्यम योग्य

चैतन्य का संचालन के लिये अयोग्य, उपयोग एवं पूरकता के लिये योग्य

5. अवसर - चैतन्य इकाई के संस्कार, परिवर्तन एवं परिमार्जन का अवसर

रासायनिक उर्मि पूर्वक परिवर्तन का अवसर है ।

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