दूध | मद्य |
1. उत्पत्ति - जीव शरीर में आहार पाचन पूर्वक ममता सहित प्रार्दुभूत निष्पत्ति है । | मधुरता सहित वस्तुओं की विकारपूत प्रक्रिया सहित आसवीकृत रस द्रव्य है । |
2. उपयोगिता - मानव शरीर के लिये पुष्टि प्रदायी पोषक, स्निग्ध, त्राणद, प्राणद एवं हदय तथा मेधस का संतुलनकारी रस द्रव्य है । | औषधि के रूप में उपयोगी; पेय के रूप में त्राण, प्राण, शोषक, पुष्टिहर, भ्रम, भ्रांति, उत्तेजनाकारक, हदय, व मेधस का असंतुलनकारी द्रव्य है । |
3. प्रभाव - सामान्य गतिदायी व पोषकदायी है । | आवेश पूर्ण गति प्रदायी है । |
4. उपादेयता - संवेदनशीलता का वृद्धिकारी तथा पोषक है । | संवेदनशीलता का क्षयकारी व शोषक है । |
5. अनिवार्यता - मानवीयता तथा अतिमानवीयता में है । | अनिवार्य नहीं है । |
मांसाहारी शिष्टता में बलपूर्वक वध एवं शोषण घटना समायी हुई है ।
अमानवीयता की सीमा में शाकाहारी व मांसाहारी मानव में शिष्टता, आचरण, व्यवहार एवं प्रवृत्ति का वैविध्य की स्थिति में रहते हुए प्रयोजन की स्थिति में प्रधानतः साम्य पाया जाता है, यह जीवों में भी प्रत्यक्ष है इसलिये यह तथ्य स्पष्ट है मानवीयता जब अध्ययनगम्य होती है, समझ में आती है तो मांसाहारी व शाकाहारी दोनों मानवीयता के पक्ष में सहमत होते हैं । जब निष्ठान्वित होते हैं तब मांसाहारी भी शाकाहारी हो जाते हैं । जागृत मानवीय शिष्टता में विश्वास एवं प्रत्याशा भी साम्य है । यही सत्यता एक बिन्दु है जहाँ समस्त प्रकार की शिष्टताएं मानवीय शिष्टता के निर्वाह हेतु चिर-प्रतीक्षित है । यही एक संभावना स्थल है जो निरन्तर संचेतना के उत्कर्ष का अन्तराल है ।