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सतर्कता एवं सजगता में न्यूनता ही सम्पूर्ण क्लेश का कारण है । सतर्कता एवं सजगता मानव इकाई में पायी जाने वाली क्षमता, योग्यता एवं पात्रता के आधार पर ही प्रकट होती हुई देखी जा रही है । इसलिये -

शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गन्धेन्द्रियों द्वारा शक्तियों का अपव्यय न होना, साथ ही सद्व्यय होना ही क्रिया शक्ति की जागृति है । सद्व्यय एवं अपव्यय का निर्धारण मानवीयता की सीमा में “नियम-त्रय” के रूप में है ।

अंतःकरण मूल प्रवृत्तियों अर्थात् आशा, विचार, इच्छा व ऋतम्भरा का अपव्यय न होना मानव चेतना, अति मानव चेतना विधि पूर्वक ही है और यही सद्व्यय है । यही इच्छा शक्ति का जागरण है ।

सम्यक-बोध एवं अनुभूति पूर्णता ही ज्ञान प्रकटन क्षमता है । यही ज्ञानशक्ति का जागरण अथवा पूर्ण जागरण है । यह “जागृति-त्रय” मानवीयता एवं अतिमानवीयता में प्रत्यक्ष है । यही मानव जीवन की चरमोत्कर्ष उपलब्धि है । सशक्त उपासना की उपादेयता यही है, यही समग्र मानव की कामना है । यही सर्वमंगल है ।

जीवन-जागृति का प्रत्यक्ष स्वरूप ही विवेक पूर्ण विज्ञान का प्रयोग है । यही सतर्कता, अखण्ड सामाजिकता, प्रबुद्धता, निर्विषमता, सहअस्तित्व, शिक्षा, विधि, व्यवस्था, सभ्यता, संस्कृति, बौद्धिक समाधान, भौतिक समृद्धि और जीवन जागृति की निरन्तरता है ।

पूर्ण जागृति पर्यन्त प्रत्येक मानव इकाई प्रयास एवं उपासना के लिये बाध्य है । इसी के फलस्वरूप मूल प्रवृत्तियों का परिमार्जन होता है, जिसके कारण विशिष्ट और शिष्ट मानसिकता एवं विचार चिन्तन-बोध क्षमता, अनुभवपूर्णता प्रत्यक्ष होती है । यही श्रेष्ठ उपासना की उपलब्धियाँ हैं । यही अध्ययन पूर्णता है । पूर्ण जागृति अस्तित्व में अनुभव ही है |

जो जिस विधा का पूर्ण ज्ञाता कार्य, व्यवहार तथा अनुभव अभ्यासी है उसमें उसकी निरन्तर क्रियाशीलता पाई जाती है । अस्तु, क्रिया की पूर्णता उस क्रिया की निरन्तरता है । इसलिये वह उदासीनता का या दूसरे को उदासीन करने का कारण सिद्ध नहीं होता है । क्योंकि पूर्णता के लिये क्रियाशीलता है । पूर्णता क्रिया की निरन्तरता है ।

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