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हुआ पाया जाता है । यही परमाणु में विकास और जागृति का तात्पर्य है । केवल मानव ही जागृति का प्रमाण प्रस्तुत करने योग्य इकाई है ।

जागृति का सम्पूर्ण स्वरूप जानना, मानना, पहचानना, निर्वाह करना ही है । पदार्थावस्था, प्राणावस्था और जीवावस्था ये सब पहचानना, निर्वाह करने के साथ अपने आचरण को “त्व” सहित व्यवस्था और समग्र व्यवस्था में भागीदारी के रूप में प्रमाणित करते हैं । जबकि मानव में पहचानना, निर्वाह करना के साथ जानना, मानना एक आवश्यकीय प्रक्रिया रही है । इसे भली प्रकार से केवल मानव कुल में ही प्रमाणित होना पाया जाता है । जानना, मानना के साथ ही मानव ज्ञानावस्था में होने के तथ्य को प्रमाणित करता है ।

मूल रूप में परमाणु ही सारे क्रियाकलापों का मूल वस्तु है । परमाणु में विकासक्रम और विकास के फलस्वरूप भौतिक, रासायनिक और जीवन क्रिया का होना पाया जाता है । गठनशील परमाणु के रूप में संसार का वैभव पदार्थावस्था, प्राणावस्था से लेकर समृद्ध मेधस रचना के रूप में दिखाई पड़ता है ।

परमाणु में विकास का पहला चरण गठनपूर्णता के रूप में स्पष्ट होता है, जिसके फलस्वरूप जीवन एक चैतन्य इकाई के रूप में अक्षय क्रिया होना पाया जाता है ।

जीवन परमाणु का जागृत होना (क्रियापूर्णता) परमाणु में विकास का दूसरा चरण है और इस जागृति को मानव परंपरा में प्रमाणित करना (आचरणपूर्णता) अंतिम चरण है ।

इस प्रकार गठनपूर्णता, क्रियापूर्णता, आचरणपूर्णता इन तीनों चरणों में परमाणु में विकास व जागृति पूरा होता है । परमाणु में विकास का अर्थ यही है ।

4. मनः स्वस्थता का स्वरूप

भौतिक, रासायनिक एवं जीवन क्रियाओं के अध्ययन क्रम में मानव का अध्ययन परिपूर्ण होना आवश्यक है । इस मुद्दे पर विगत से अथक प्रयास भी हुआ है । मानव के संदर्भ में, मानवत्व को पहचाने बिना जो अध्ययन किया गया, उसमें भौतिक, रासायनिक क्रियाकलाप का अध्ययन भी अधूरा रह गया । उसी प्रकार भौतिक, रासायनिक क्रियाकलापों का जितना भी अध्ययन हुआ, उसके आधार पर भी मानव को समझना पूरा नहीं हो सका । दोनों प्रकार से इसे ऐसे समझ सकते हैं कि भौतिक, रासायनिक क्रियाकलाप का सूत्र अभी तक मानव को जितना उपलब्ध

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