इसी प्रकार प्राणावस्था और जीवावस्था में भी कार्यरत सभी इकाई उन-उन अवस्थाओं के लक्ष्य के अर्थ में आचरण करती हुई स्पष्ट है, यथा प्राणावस्था अस्तित्व सहित पुष्टि के अर्थ में, बीज से वृक्ष, वृक्ष से बीज तक यात्रा करता हुआ देखने को मिलता है । इसी प्रकार सम्पूर्ण जीव संसार, अस्तित्व, पुष्टि सहित वंशानुषंगीय विधि से जीने की आशा में आचरण करता हुआ देखने को मिलता है । इतने सुस्पष्ट स्थितियों को देखने के उपरान्त यह भी आवश्यक रहा कि मानव का आचरण अस्तित्व, पुष्टि, आशा सहित सुख को प्रमाणित करने के अर्थ में होना है जिसके लिए ही मनःस्वस्थता प्रमाणित होना स्वाभाविक रही ।
मानव का आचरण मूल्य, चरित्र, नैतिकता के संयुक्त रूप में स्पष्ट होना पाया जाता है । मौलिकता पूर्वक ही मूल्यों का मूल्यांकन होना पाया जाता है, मानव में संबंधों का निर्वाह, उसकी निरंतरता, उसकी स्वीकृति एक मौलिकता है । इसी अर्थ में संबंधों की पहचान, मूल्यों का निर्वाह, मूल्यांकन, परस्पर उभय तृप्ति अथवा परस्पर तृप्ति का होना पाया जाता है । यही मूल्य और मौलिकता का तात्पर्य है । आचरण का दूसरा भाग चरित्र जो स्वधन, स्वनारी, स्वपुरुष, दयापूर्ण कार्य व्यवहार के रूप में सुस्पष्ट होना पाया जाता है, जिससे मानव का मौलिक चरित्र अथवा सार्वभौम चरित्र सुस्पष्ट हो जाता है । तीसरी विधा में नैतिकता मानव में धर्म नीति और राज्य अर्थ नीति की अपेक्षा और प्रमाण होना पाया जाता है । प्रमाण रूप में हर जागृत नर-नारी अपने तन, मन, धन रूपी अर्थ के सुरक्षा, सदुपयोग के रूप में प्रस्तुत होते हैं । इसमें से सुरक्षात्मक विधियाँ राज्यनीति और सदुपयोगात्मक विधियाँ धर्म नीति एवं परिवार के आवश्यकता से अधिक उत्पादन ही अर्थनीति के नाम से जानी जाती है ।
सहअस्तित्ववादी विधि से हर मानव, मानवत्व सहित व्यवस्था और समग्र व्यवस्था में भागीदारी करने योग्य इकाई है । इसमें मुख्य मुद्दा यही है - स्वयं को, स्वयं के लिये रासायनिक, भौतिक एवं जीवन क्रिया के संयुक्त रूप में होने को अध्ययन पूर्वक स्वीकारने की आवश्यकता है । जीवन क्रिया की महिमा और मानव परम्परा में इसकी आवश्यकता ध्यान में रहना अति आवश्यक है । तभी मानव शोध के लिए तत्पर होना पाया जाता है । ऐसी तत्परता जागृति सहज विधि से सर्वशुभ के अर्थ में प्रस्तावित होना होता है । तभी, सर्वमानव समाधान पूर्वक व्यक्त होने, समझदारी पूर्वक हर परिवार समाधानित और सुखी होने की स्थिति स्पष्ट हो जाती है, फलस्वरूप समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व प्रभावित होने का सौभाग्य उदय होता है, यही मुख्य बिन्दु है । सर्वशुभ का प्रमाण भी यही है क्योंकि समाधान, समृद्धि पूर्वक ही मानव सुख, शान्ति का अनुभव