क्रिया का अथवा मनःस्वस्थता का अथवा जीवन जागृति का अभिव्यक्ति, सम्प्रेषणा, प्रकाशन होना स्पष्ट हुआ ।
मनःस्वस्थता मानव परम्परा में, से, के लिए अति अनिवार्य मुद्दा है । मनःस्वस्थता पूर्वक मानव लक्ष्य प्रमाणित हो पाता है । मानव लक्ष्य सार्थक होने के क्रम में मानव अपने में व्यवस्थित हो जाता है और व्यवस्था में भागीदारी करता है ।
मानव में व्यवस्था अपने आप में रासायनिक-भौतिक क्रिया में सीमित न होने का प्रधान कारण मानव में जीवन क्रिया का होना है । जीवन क्रिया का गवाही हर मानव ही है । यद्यपि जीवों में भी जीवन क्रिया होते हैं, परन्तु जीवों में जीवन शरीर के अनुरूप कार्य करने में सीमित है, क्योंकि हर जीव वंशानुषंगीय विधि से प्रवृत्ति और कार्यों को प्रमाणित करता ही रहता है । यह संवेदनाओं के अर्थ में सीमित रहना देखा गया है । जबकि मानव में जीवन संज्ञानशीलता (जानना, मानना) और संवेदनाशीलता (पहचानना, निर्वाह करना) दोनों का प्रभाव दिखाई पड़ता हैं । जीव संसार में केवल संवेदनायें प्रमाणित हो पायी है, जबकि मानव परंपरा में संज्ञानशीलता और संवेदनशीलता दोनों प्रमाणित होते हैं और हर जागृत मानव संज्ञानीयतापूर्वक संवेदनाओं पर नियंत्रण पाए रहते हैं । यह जागृतिपूर्ण अथवा सहज मानव की मौलिकता है । अतएव संज्ञानीयता पूर्वक संवेदनायें नियंत्रित, संतुलित और प्रयोजनशील होना ही मानव की मौलिकता है । इस अर्थ में संपूर्ण प्रयोजन संज्ञानीयता का प्रमाण होना पाया जाता है ।
मानव की परिभाषा मनाकार को साकार करने, मनः स्वस्थता को प्रमाणित करने के अर्थ में सार्थक है । यह हर मानव में, से, के लिये स्वीकृत है । मानव स्वस्थ मानस का होना चाहता ही है और मनाकार को साकार करता ही रहता है । इसे सर्व देश काल में परीक्षण किया जा सकता है । इस ढंग से रासायनिक-भौतिक और जीवन क्रिया का संयुक्त प्रकाशन रूपी मानव अन्य प्रकृति जैसे जीव प्रकृति, वनस्पति प्रकृति और खनिज प्रकृति से भिन्न होना अपने आप में स्पष्ट है ।
सहअस्तित्ववादी विचार के अनुसार ज्ञान, विवेक, विज्ञान के अनुसार सर्वमानव को मानव लक्ष्य के अर्थ में शिक्षा संस्कार को अपनाना आवश्यक है । इसमें मानवीयता पूर्ण आचरण मानव लक्ष्य के अर्थ में स्पष्ट रहना आवश्यक है, क्योंकि सभी अवस्था में आचरण के आधार पर ही उन अवस्थाओं का लक्ष्य पूर्ण हुआ समझ में आता है । जैसे पदार्थावस्था में सम्पूर्ण वस्तु परिणाम के आधार पर यथास्थिति रूपी लक्ष्य का आचरण करता हुआ देखने को मिलता है ।