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है, उसके आधार पर मानव का सूत्र और व्याख्या नहीं होता । इसलिए हम मानव, मानव पर विश्वास करने की स्थिति में नहीं पहुँचे । हम सर्व देश में रहने वाले मानव, भौतिक क्रियाकलाप पर विश्वास करते हैं, जबकि मानव के क्रियाकलाप पर विश्वास करना अभी तक बना नहीं ।

इस समस्या के चलते अभी तक मानव का मानवत्व, मानव का आचरण, मानव की मानसिकता, मानव की प्रकृति पर निश्चयन करना संभव नहीं हुआ । इस घोषणा को प्रकारान्तर से सभी शासन संस्था, शिक्षण संस्था, धर्म संस्कार संस्था, प्रौद्योगिकी संस्था, व्यापार संस्थायें अनेक प्रकार से कहती ही रहती हैं । इस स्थली की रिक्तता ही विकास और जागृति को समझने की आवश्यकता का कारण रही ।

इस बात को स्पष्ट किया जा चुका है कि परमाणु ही भौतिक, रासायनिक और जीवन क्रियाकलाप में भागीदारी करता है । जीवन क्रियाकलाप के मूल में गठनपूर्ण परमाणु का होना स्पष्ट किया जा चुका है । चाहे भौतिक क्रियाकलाप हो, रासायनिक हो या जीवन क्रियाकलाप हो, इन तीनों विधा की पहचान और विविधता की पहचान, एकता की पहचान, ये उन-उनके आचरण के आधार पर ही हम मानव निर्धारित कर पा रहे हैं । लोहे के आचरणों के आधार पर लोहे की पहचान निर्धारित करते हैं । वैसे ही मिट्टी, पत्थर, धातु, गधा, घोड़ा, बिल्ली, कुत्ता, चींटी, हाथी इन सब को उन-उन के आचरणों के आधार पर ही पहचानते हैं और उनके साथ मानव के होने वाले कार्य व्यवहार को भी निर्धारित कर पाते हैं ।

अस्तित्व में मानव, जीवन क्रिया और भौतिक रासायनिक क्रिया (शरीर) का संयुक्त स्वरूप होना स्पष्ट है । परमाणु गठनपूर्ण स्थिति में जीवन क्रियाकलाप को सम्पन्न करता है । जीवन ही आशा, विचार, इच्छा, संकल्प (ऋतम्भरा) और प्रमाण (अनुभव) को अभिव्यक्त, सम्प्रेषित और प्रकाशित करता है । इसका परीक्षण हर मानव अपने में और हर मानव में किया जाना बन पड़ता है । इसलिये मानव, मानव में, से, के लिए अध्ययन करने की वस्तु है ।

मनःस्वस्थता को सुख कह सकते हैं । यह समाधान का अनुभव एवं प्रमाण है । मनःस्वस्थता का प्रमाण अर्थात् व्यवहार परम्परा में प्रमाण समाधान के रूप में होना पाया गया । इसी के साथ मानव लक्ष्य-समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व के रूप में पहचाना गया है और हर नर-नारी इसका अनुभव कर सकते हैं । यह भी पता लगा कि समाधान ही अनुभव में सुख है । सुख का प्रमाण व्यवहार में समाधान है । इस प्रकार समाधान का ध्रुवीकरण हुआ । समाधान जीवन

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