बड़ी गवाही क्या होगी । इस गवाही के आधार पर अर्थात् पदार्थ, प्राण, जीव अवस्था के निश्चित कार्यकलाप के अनुसार, मानव अपने व्यवस्था में होने का भरोसा कर सकता है ।
मानव को सहअस्तित्व रूपी अस्तित्व सहज विधि से स्वयं व्यवस्था रूप में जीने का सूत्र और व्याख्या स्वयंस्फूर्त विधि से समझ आता है ।
सहअस्तित्ववादी विधि से सम्पूर्ण मानव को एक अखण्ड समाज के रूप में पहचानना हो पाता है । अखण्ड समाज मानसिकता का पूर्ण समझ ही ज्ञान, विज्ञान, विवेक रूप में सार्वभौम व्यवस्था का ताना-बाना स्पष्ट हुआ रहता है । ऐसे सर्वशुभ के अर्थ में ही मानव व्यवस्था के रूप में सार्थक होना पाया गया । इसलिये सार्वभौम व्यवस्था सम्पन्न होना, मानव कुल के लिये परम वैभव, सूत्र और व्याख्या है । इस प्रकार मानव कुल, मानव संचेतना पूर्वक ही अपने में से सार्वभौम व्यवस्था, अखण्ड समाज में भागीदारी करने की प्रवृत्ति स्वयंस्फूर्त होना पाया जाता है। इसका एकमात्र कारण है कि सहअस्तित्ववादी विधि से मानव अपने को पहचानता है ।
मानव जाति आचरण में धर्म प्रधान है, जीव जातियाँ स्वभाव प्रधान, वनस्पतियाँ गुण प्रधान, पदार्थ रूप प्रधान है । मानव धर्म अपने में सुख के आधार पर समाधान प्रमाणित होना आवश्यक हो चुका है । सर्वतोमुखी समाधान पूर्ण शिक्षा संस्कार ही इसके लिये परम्परा और स्त्रोत है । यही जागृत परम्परा है ।
5. सहअस्तित्व स्थिर है, विकास और जागृति निश्चित है
सहअस्तित्व रूपी अस्तित्व स्थिर है । सहअस्तित्व में ही विकास और जागृति निश्चित है । इस धरती पर हम मानव इस तथ्य का अध्ययन करने योग्य स्थिति में हो चुके हैं । सर्व शुभ का दृष्टा, कर्त्ता, भोक्ता, उसके मूल में शिक्षा संस्कार से पाई गयी ज्ञान, विज्ञान, विवेक का धारक-वाहक केवल जागृत मानव ही है । ये तथ्य अपने को भली प्रकार से समझ में आता है । सहअस्तित्ववादी दर्शन, ज्ञान, विज्ञान, विवेक पूर्वक ही हर मानव सर्वशुभ घटनाक्रम में अपने को व्यवस्था सहज रूप में प्रमाणित करते हुए, समग्र व्यवस्था में भागीदारी करना बन जाता है । यही सर्व शुभ कार्यक्रम का पहुँच और प्रगट रूप है । इसके लिये अर्थात् सार्वभौम ज्ञान, विज्ञान, विवेक के लिये अध्ययन ही मात्र एक स्रोत है । ज्ञान, विज्ञान का स्वरूप अपने में सहअस्तित्व रूपी अस्तित्व दर्शन ज्ञान, चैतन्य प्रकृति रूपी जीवन ज्ञान, मानवीयता पूर्ण आचरण रूपी क्रिया