रहता है । उसके मूल में जाए तो कोयले को आरंभिक रूप में जलाने के लिये कोई न कोई जलने वाला, जलाने वाला के रूप में होता है । जैसे, जलता हुआ आग । इन विधियों से चलकर कोयला, लकड़ी, प्राकृतिक गैस, पेट्रोलियम गैस अथवा विकिरणीय प्रक्रिया से ताप उद्दीपन क्रिया को मानव सम्पादित करता हुआ देखने को मिलता है । साथ में विस्फोटक द्रव्यों की पहचान, उसका संयोजन और दबाव विधि से तापोद्दीपन होता हुआ भी देखने को मिल रहा है।
ऐसे ताप को नियोजित कर मानव आवश्यक कार्यों को सिद्ध करते ही हैं । जैसे पानी गरम करना, खाना बनाना, कमरा गरम करना, दवाई को सूखाना आदि । इसी प्रकार अनेक क्रियाओं को ताप संयोजन से, नियन्त्रण से सम्पादित करता ही है । यह मानव परम्परा में अभ्यस्त हो चुकी है। ताप कहीं भी हो, वह उस वातावरण के ताप से अधिक होना आवश्यक है तभी ताप है । दूसरे विधि से, जहाँ ताप हो उसके आस-पास उससे कम ताप हो, तभी अधिक ताप कम ताप की ओर परावर्तित होता है । जैसा कहीं भी हम आग जलाते हैं, वहाँ अधिक ताप हो जाता है । कम ताप की ओर परावर्तित होने की क्रिया को ऐसा देखा जाता है कि ताप जहाँ प्रकट रहता है, उसके आस-पास के अणु परमाणुओं के तप्त होने से फैल जाता है । इसका मतलब यह हुआ, तप्त अणुयें अपने प्रभाव क्षेत्र, वातावरण में ताप फैलाकर अणुओं को तप्त बनाता है, जो इसके ताप से कम रहता है । वातावरण के अणु-परमाणु इसको स्वीकार कर इस क्रम को आगे बढ़ाते हैं । इस प्रकार ताप परावर्तित होकर कम होते जाता है, अन्ततोगत्वा सामान्य ताप तक पहुँचते हैं । सामान्य ताप से आशय स्वभाव गति में होने से है (स्वभाव गति का तात्पर्य है विकासक्रम, विकास, जागृतिक्रम, जागृति में जो यथास्थितियाँ होती हैं अर्थात् त्व सहित व्यवस्था, समग्र व्यवस्था में भागीदारी ही स्वभाव गति है) ।
इसका प्रयोग इस प्रकार से किया जा सकता है कि किसी भी कमरे के एक कोने में एक मोमबत्ती जलाकर रख दें, अथवा मिट्टी का तेल का दिया अथवा हीटर जलाये, स्टोव जलाये अथवा ज्यादा से ज्यादा प्रकाश देने वाले बल्व जलाये, उसको छूने से हमको जितना ताप महसूस होगा, उससे कुछ दूर में उससे कम महसूस होगा, ज्यादा दूर में और कम होगा, दूसरे कोने में सबसे कम होगा, इसका निरीक्षण, परीक्षण हर विद्यार्थी कर सकता है । कमरे के बीच में रखकर यही प्रयोग करें तो पता लगता है कि ऊष्मा सभी ओर समान रूप से परावर्तित होता है ।
इसी प्रकार हम उक्त प्रयोग विधि से यह भी स्वीकार सकते हैं कि सूर्य का ताप सभी ओर समान रूप से परावर्तित हो रहा है । सूर्य बिम्ब से परावर्तित ताप धरती को छूता है सूर्य की ससम्मुखता