एक समान स्थली में कोयला को पोते, एक दूसरे समान स्थली में सफेद को पोत दें । कड़ी धूप के समय कोयला जहाँ पोता रहता है, वहाँ पैर रखने से गरम लगता है, सफेद जहाँ पोता रहता है वहीं कम गरम लगता है । इस दोनों के बीच की स्थितियों को भी अन्य जगहों में देखा जा सकता है । इससे यह पता लगता है कि कोयला ज्यादा से ज्यादा ताप को अपने में पचा लेता है। धीरे-धीरे वितरित करता है । इस प्रमाण से हमें यह समझ में आता है कि इस धरती पर पहुँचने वाली ब्रह्माण्डीय उष्मा, इसमें सबसे अधिक सूर्य ऊष्मा, इस धरती पर पचाने की आवश्यकता रही । क्योंकि धरती अपने ऊष्मा संतुलन को बनाये रखने के उपरान्त ही धरती के सतह पर हरियाली सुरक्षित रही । हरियाली सुरक्षित रहने के उपरान्त ही कृमि, कीट, जीव, जानवरों का प्रकटन, उसके उपरान्त ही मानव का प्रकटन होना क्रमिक रचना वैभव के रूप में हम मानव को समझ में आता है । इस वैभव के मूल में धरती अपने में ऊष्मा संतुलन बनाये रखना एक प्रमुख उपलब्धि रही है । इसमें मानव का कोई योगदान नहीं रहा । इसी कोयले में समाहित तेल ही धरती में खनिज द्रव्यों के साथ परिपक्व हो कर खनिज तेल के रूप में उपलब्ध हुआ है । इसका भी संरक्षण धरती के अन्दर उचित वातावरण के रक्षा कवच के साथ बना ही रहा । सुरक्षित रखने का तात्पर्य तेल तक प्राणवायु अर्थात् आक्सीजन के न पहुँचने देने के लिए वातावरण को बनाये रखना ही है ।
इस प्रकार से हम इस तथ्य पर पहुँचते हैं कि धरती की कम्पनात्मक गति के समान रूप में सम्पूर्ण खनिज में कम्पन और स्पन्दन, उससे अधिक रासायनिक द्रव्यों में स्पन्दन, उससे अधिक प्राण वायु में स्पन्दन, फलस्वरूप रचनाएं इस धरती पर प्रकट हैं । ये सब ऐसी संतुलित रचनाओं को प्रकट करने के अर्थ में, इसके पूर्व भूमि में सम्पन्न सम्पूर्ण क्रियाकलाप है, अतएव ये सब नियम पूर्वक ही सम्पादित हुई हैं, नियंत्रण और संतुलन पूर्वक अवस्थायें प्रकट हैं । इसे हम मानव को अच्छी तरह से समझने की आवश्यकता है और अनुशीलन पूर्वक संरक्षण, संवर्धन विधि से स्वयं को व्यस्थित कर लेने की आवश्यकता है । मानव के व्यवस्थित होने के मूल में ज्ञान, विज्ञान, विवेक का एक संगीतमय कार्यकलाप स्पष्ट रहने से है । यही कार्य-कलाप भाषा, कार्य-व्यवहार में नियोजित होकर प्रयोजनों को प्रतिपादित करता है । मानव का प्रयोजन समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व को प्रमाणित करना ही है ।
इस क्रम में मानव अपने तर्क से ऐसा सोचते हैं - सूर्य विकसित होने पर (स्वभावगति) धरती के लिए ऊष्मा कहाँ से मिलेगा, इस धरती पर यह हरियालियाँ कैसे रहेंगी, ये सब हरियालियाँ सूर्य