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इसी क्रम में कई ग्रह-गोल में अधिकतम ताप जैसा सूर्य में है का होना एवं सम्मुख जितने भी ग्रह गोल होते हैं जिनमें कम ताप रहता है, उनमें ताप का समाहित हो जाना दिखाई पड़ता है । इस क्रम में यह धरती अपने में कितना श्रम किया है, यह हर जागृत मानव को बोध होता है ।

इस धरती के ऊपरी सतह में जंगल, समुद्र और थोड़े भाग में मरूस्थली होना पाया जाता है । यह जंगल कैसा भी हो, जंगल के सर्वाधिक पेड़-पौधे, लता-गुल्य अपान वायु (कार्बन डाई आक्साइड) नाम से जाने वाले द्रव्य को अपना खाद्य पदार्थ बनाते हुए अथवा पाचन पदार्थ बनाते हुए प्राण वायु को अर्थात् ऑक्सीजन को प्रदान करता है । जबकि, कोयला और खनिज कोयले से निष्पन्न तेल-पेट्रोलियम को जितने भी यंत्रों में ईंधन के रूप में प्रयोग करते हैं अथवा प्रौद्योगिकी विधि से यंत्र संचालन में प्रयोग किया जाता है, इन सब के विसर्जित ईंधनावशेष में पाई जाने वाली प्राण घातक वायु (कार्बन मोनोआक्साईड) पर्यावरण के लिए अत्यंत घातक मानी जा रही है । इससे पता लगता है, ऐसे खनिज कोयला के मूल में जो बड़े-बड़े जंगल धरती में दबकर कोयले के रूप में आज प्रकट हैं, ऐसे दबने के पहले के जंगल वही द्रव्य अपने में पचा रखा है, इसी को अपना खाद्य पदार्थ बनाकर आकाशचुंबी वृक्ष बने रहे होंगे । ऐसी आकाशचुंबीयता की परिकल्पना को धरती में बनी हुई खनिज कोयले की मोटाई के आधार पर किया जाना स्वाभाविक है । वर्तमान में कहीं-कहीं, कोयले की 150 से 180 मीटर मोटाई की परत बिछी है । इससे अन्दाज लगाया जा सकता है कि कितने बड़े-बड़े वृक्ष रहे होंगे । एक मीटर कोयला होने के लिए कम से कम दस मीटर वृक्ष की लम्बाई की आवश्यकता पड़ती है, इसकी सघनता गणितीय विधि से सभी समझ सकते हैं । इस प्रकार अपार कोयला बनाने के लिए कितने बड़े वृक्षों का जंगल रहा होगा, गणितीय विधि से ही इसको निकाला जा सकता है। सामान्य परिकल्पना में समाना ही बहुत मुश्किल है, परिकल्पना में यही लाया जा सकता है कि आकाशचुंबी सघन जंगल रहे होंगे । ऐसे जंगल भूमि के अंदर दबकर सैकड़ों हजारों वर्षों में कोयला हुआ होगा, वही जंगल प्राणघातक वायु (कार्बन मोनो ऑक्साईड) को पचाता रहा होगा, अब वही कार्बन मोनोऑक्साईड को पैदा करता है । अभी पौधे कार्बनडाईऑक्साईड पचाते हैं, ऑक्सीजन को पैदा करते हैं । यह सभी ज्ञानियों-विज्ञानियों को विदित हो चुकी है । इस बात का जिक्र यहाँ इसलिए कर रहे हैं कि इस धरती के लिए इसका प्रयोजन क्या है ?

हम इस बात को समझ चुके हैं कि कोयला, कार्बन उष्मा को शोषित करता है । वातावरणीय ऊष्मा को अपने में ज्यादा से ज्यादा समा लेता है । इसका प्रयोग इस प्रकार कर सकते हैं कि

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