उदाहरण प्रस्तुत हो चुका है । अब यहाँ रूप, गुण, स्वभाव, धर्म के प्रति स्पष्ट होना आवश्यक है । हर रूप आकार, आयतन, घन के रूप में स्पष्ट है । आकार का मतलब जैसा बना हुआ रहता है, साथ में जितने जगह में फैला रहता है, कार्य करता है अर्थात् स्थिति रहता है । जैसा एक परम्परा के बारे में सोचा जाये, कितने जगह में क्रियाशील रहता है । वैसे ही आगे अनेक अणु से बनी रचनाएं चाहे बहुत बड़ी हों, छोटी हों, इसका रूप जिस आकार में बने रहते हैं, जितना जगह घेरे रहते हैं, इसके आधार पर रूप का पहचान होता है । इसमें से आकार क्या है, आकार कैसे है का पक्ष बनावट से है, आयतन का अर्थ घिराव (फैलाव) से है । घेरने का तात्पर्य व्यापक वस्तु में सभी ओर से सीमित रहने से है, दूसरी विधि से लम्बाई, चौड़ाई, ऊँचाई से भी है । इन विधियों से हम आकार को पहचान पाते हैं, ऐसे प्रत्येक आकार अथवा इकाई सभी ओर प्रतिबिम्बित रहता है । इकाई के सभी ओर स्थित इकाईयों पर आशित इकाई का प्रतिबिम्ब रहता ही है । इस प्रकार से एक दूसरे के पहचान की विधि बनी रहती है । पहचान विधि को बनाने की जरूरत नहीं है । इस विधि से हर वस्तु, हर वस्तु पर प्रतिबिम्बित रहता ही है । हर वस्तु प्रकाशमान है ।

उक्त विधि से सोचने पर यह प्रश्न निर्गमित हो सकता है, क्या एक दूसरे को पहचानने के लिए प्रकाश की जरूरत नहीं है ? जैसा सूर्य प्रकाश धरती पर उपलब्ध है । इसका उत्तर यही है, हम अभी मानव जो कुछ भी प्रकाश पहचानते हैं, आँखों से प्रकाश को पहचानने के आधार पर ही है । जबकि, सभी वस्तु प्रकाशमान है ही । इसका कारण यही है, हर परमाणु में श्रम, गति, परिणाम रूपी क्रिया बना ही रहता है । गति के फलन में शब्द, ऊष्मा, विद्युत, तरंग प्रकट हुआ रहता है । क्रिया के मूल में ऊर्जा सम्पन्नता और चुम्बकीय बल सम्पन्नता स्वयं सिद्ध रहता ही है। इन चारों प्रकार की बल सम्पन्न इकाई के वैभव को विद्यमानता और प्रकाशमानता के रूप में प्रकाशित किये रहते हैं अर्थात् प्रकाशित रहते हैं । इससे हमें यह समझ में आता है कि हर वस्तु प्रकाशमान है । प्रकाशमानता का साक्ष्य प्रतिबिंबन के रूप में इकाई के सभी ओर होना सुस्पष्ट हो चुका है । एक दूसरे को पहचानने के लिए प्रतिबिंबन ही आधार है, यह तथ्य समझ आ चुका है । इसके लिए किसी भी एक कमरे में किसी वस्तु को रखें, स्वभाविक रूप में सभी ओर से हम बैठें, वह वस्तु हम सबकी नजरों में आता ही है । दूसरी विधि से, हमारी आंखें, चक्षु रचना के अनुसार अधिक प्रकाश के बिना अंधेरे कमरे में कोई चीज दिखता नहीं । कमरे में रखी वस्तु का प्रतिबिंबन में कोई गति होती नहीं । यह इस विधि में समझ में आता है, रात्रि बेला से संचालित होने वाले उल्लू और सदृश्य आँख वाले जीव जानवर उनके आवश्यकीय वस्तु को पहचानते ही

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