- व्यवस्था ही विकास एवं जागृति।
- विकास एवं जागृति ही सृष्टि है।
- नियम ही न्याय, न्याय ही धर्म, धर्म ही सत्य, सत्य ही ऐश्वर्य (सहअस्तित्व), ऐश्वर्यानुभूति ही आनंद, आनंद ही जीवन, जीवन में नियम है।
- भ्रमित मानव ही कर्म करते समय स्वतंत्र एवम् फल भोगते समय परतन्त्र है।
- जागृत मानव कर्म करते समय तथा फल भोगते समय स्वतंत्र है।
- मानव शरण
- अखण्ड सामाजिकता सार्वभौम व्यवस्था (सहअस्तित्व) सहज प्रमाण परंपरा।
- मानवीय व्यवस्था
- मानवीयता। मानवत्व सहित व्यवस्था, समग्र व्यवस्था में भागीदारी।
- व्यक्ति में पूर्णता
- क्रियापूर्णता।
- आचरणपूर्णता।
- समाज में पूर्णता
- सर्वतोमुखी समाधान।
- समृद्धि।
- अभय।
- सहअस्तित्व सहज प्रमाण परंपरा।
- राष्ट्र में पूर्णता
- कुशलता।
- निपुणता।
- पाण्डित्य।