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ऊपर की बातों में मानव के अतिरिक्त तीनों अवस्थाओं के अध्ययन की झलक आयी है। उसके अनुसार और वर्तमान में यही देखने को मिलता है कि “अस्तित्व में प्रत्येक एक अपने त्व सहित व्यवस्था है और समग्र व्यवस्था में भागीदार है।” इसके प्रमाणों को पूरक विधि से पदार्थावस्था, प्राणावस्था जीवावस्था में वर्तमान होना स्पष्ट किया गया। इसी क्रम में मानव में, से, के लिए भी व्यवस्था अपेक्षित है।

“अस्तित्व में व्यवस्था ही समाधान है, अव्यवस्था ही समस्या है” मानव अभी तक समस्याओं से जूझते ही आया है। अभी तक मानव अपने को एक इकाई मानने में शंकाग्रस्त है और संकटग्रस्त भी है। इसीलिए समाधानात्मक भौतिकवाद के प्रति शंका अथवा आश्चर्य होना भी संभव है। मनुष्य सहज रूप में जानने-मानने-पहचानने के आधार पर एक योग्य इकाई है। सहअस्तित्व सहज विधि से ही विश्वास होने के कारण मैं यह विश्वास करता हूँ कि मानव यथार्थता, सत्यता, वास्तविकता को हृदयंगम कर सकता है । यथार्थ यही है कि “मानव मानवत्व सहित व्यवस्था है” और समाधान है। मानवत्व से व्यवस्था के रूप में प्रमाणित होने के लिए सर्वप्रथम एक व्यक्ति का सर्वतोमुखी समाधान संबंधी तथ्यों में ओत-प्रोत होना या दूसरी भाषा में अधिकार संपन्न होना आवश्यक रहा है। यह होना अब संभव हो गया है। इसका प्रमाण यही है कि “समाधानात्मक भौतिकवाद” मानव के सम्मुख प्रस्तुत है।

मानव सहज रूप में ही अपनी कल्पनाशीलता कर्म स्वतंत्रता सहज महिमा के आधार पर अनेक प्रयोग करता है अथवा करने योग्य है ही। कल्पना करने पर पता चलता है कि हर व्यक्ति अपने में समाधान चाहता है। इसी प्रकार न्याय चाहिए या अन्याय, शांति चाहिए या अशांति, संघर्ष चाहिए या समाधान - इन सब कल्पनाओं में मानव सहज ही शांति, न्याय, समाधान जैसे तथ्यों को स्वीकारता है।

मानव स्वाभाविक रूप में ही सुख चाहता है भले ही सुख को वह नहीं जानता, इसके बावजूद वह सुख का पक्षधर होता है। अधिकांश मानव सुख के लिए ही रुचियों, प्रलोभनों के पीछे दौड़ते रहते हैं। इस तथ्य के निरीक्षण परीक्षण के उपरान्त यह निष्कर्ष निकलता है कि परंपरा जिन दिशा कोणों में प्रोत्साहित करता है अथवा जितना जागृत हुआ रहता है उसी के अनुरुप दिशा निर्देशन कर पाता है। परंपरा का तात्पर्य शिक्षा-संस्कार, संविधान और व्यवस्थाओं का अविभाज्य रूप में क्रियारत होना है। यह एक सहज प्रमाण है कि हर समुदाय किसी न किसी संविधान, शिक्षा, व्यवस्था तथा संस्कार को अपनाया रहता है।

इसे इस धरती के सभी समुदायों में निरीक्षण परीक्षण करके देखा जा सकता है। इससे यह भी स्पष्ट हुआ कि उन चारों आयामों के संबंध में मानव की कर्म स्वतंत्रता कल्पनाशीलता ने सहज रूप में कार्य किया है। अभी तक किसी एक अथवा एक से अधिक समुदायों में स्थापित संविधान व्यवस्था और संस्कार सभी समुदायों के लिए स्वीकृत नहीं हो पाया। सभी समुदायों में मानव विचारशील रहे हैं। समीचीन ज्ञान विज्ञान

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