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(2) शिला व धातु युग

दूसरा इतिहास जंगल युग के शिला युग, शिला युग से धातु युग, धातु युग से दास युग (आदर्शवादी विचार) तथा दास युग से संघर्ष युग जो आज वर्तमान है।

शिला और जंगल में मानव प्राकृतिक प्रकोप और क्रूर जानवरों से प्रधान रूप से भयभीत ही रहा। जैसे ही कबीला एवं ग्राम युग आया वैसे ही एक समुदाय दूसरे समुदाय से भयभीत होते रहा। जैसे ही दास युग आया वैसे ही ईश्वर, राजा और गुरु के प्रति नतमस्तक होने की पंरपरा चली। राजा से प्रजा को सुख चैन का आश्वासन मिलते रहा। धर्म ग्रंथों, दर्शनों एवं विचारों के आधार पर पाप, अज्ञान, स्वार्थ से मुक्त होने के आश्वासन के आधार पर दास युग को स्वीकारा गया । इसके बावजूद द्रोह-विद्रोह-युद्घ कहीं नहीं रुका।

इसके उपरान्त जैसे ही भौतिकवादी युग विज्ञान और तकनीकी पूर्वक यंत्र प्रमाण सहित आया वैसे ही संघर्ष युग का लोकव्यापीकरण होना आरंभ हुआ। इस युग की मूलभूत बात - “सुविधा, संग्रह और भोग” है। फलस्वरुप पहले ग्राम-कबीले में मानव में निहित अमानवीयता का भय जितना रहा उससे कहीं अधिक दास युग में रहा। आज संघर्ष युग में मानव में निहित अमानवीयता का भय सर्वाधिक हो गया है। इसी के साथ प्राकृतिक भय और जीव भय इस युग में अन्य युगों की अपेक्षा कम हुआ है।

(3) वैचारिक इतिहास

इतिहास का तीसरा चरण विचारधाराओं से शुरु होता है। यही अभी तक के प्राप्त विचारों के अनुसार ईश्वरवादी विचार है, जो प्रकारान्तर से तीन स्वरुप में मानव के सम्मुख है :-

1. अध्यात्मवाद

2. अधिदैवीवाद

3. अधिभौतिकवाद।

इन तीनों वादों को सम्मिलित रूप में आदर्शवाद नाम दिया गया है। आदर्शवाद का मूल प्रतिपादन रहस्यमूलक ईश्वर केन्द्रित चिंतन है। आदर्शवाद के अंतर्गत ऐसी रहस्यमयता को ज्ञान माना जाता है। अध्यात्मवाद वाले अध्यात्म ज्ञान को परम मानते हैं। अधिदैवीवाद वाले अधिदैवी ज्ञान को परम मानते है, जबकि ये सभी रहस्य हैं। इन तीनों वादों के अनुसार ज्ञान को चेतना, व्यापक और सत्य बताया गया है। मूलत: ईश्वर का प्रतिपादन अथवा सत्य का प्रतिपादन रहस्य पर आधारित होने के कारण ईश्वर भी, सत्य भी, ज्ञान भी रहस्यमय रह गया।

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