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मानव आ गया है। पर इसका निराकरण एक विधि से है- वह है “समाधान विधि”। अस्तित्व स्वयं समाधान है, इसीलिए अस्तित्व सहज विधि से ही सर्वमानव के समाधानित होने का सूत्र और संभावना समीचीन हैं। इसकी आवश्यकता को अधिकांश लोग अनुभव कर रहे हैं।

पूरकता विधि से समाधान :-

अस्तित्व में समाधान, दर्शनक्रम में किसी एक की भी ख्याति समाप्त नहीं हो सकती, चाहे मानव कितना भी समस्यात्मक प्रयत्न कर ले। अर्थात् कोई न कोई मानव संतान ही सर्वशुभ समाधान के लिए प्रयत्नशील रहता ही है। इससे यह ज्ञान, विवेक और प्रक्रिया सुलभ होती है कि एक दूसरे को मिटाने की आवश्यकता नहीं। सभी अवस्थाओं का अपना-अपना उपयोग, सदुपयोग, प्रयोजन अस्तित्व सहज विधि से ही अनुबंधित है। यही पूरकता विधि है। मानव में यह पूरकता विधि संबंधों को पहचानने के आधार पर या संबंधों को निर्वाह करने के प्रमाणों के आधार पर सार्थक होती है । प्रत्येक मानव में यह अध्ययनगम्य होता है कि जहाँ-जहाँ हम संबंधों को पहचान पाते है, वहाँ-वहाँ मूल्यों का निर्वाह होना पाया जाता है। इस तथ्य के आधार पर अस्तित्व में परस्पर संबंध एक मौलिक अनुबंध है। ये भी अनुबंध पूर्णता और उसकी निरंतरता के लिए अनुबंधित हैं। पदार्थावस्था से प्राणावस्था, प्राणावस्था से जीवावस्था, जीवावस्था से ज्ञानावस्था अनुबंधित है ही इसका प्रमाण इन सब का वर्तमान ही है। इसी आधार पर ज्ञानावस्था से जीवावस्था, जीवावस्था से प्राणावस्था, प्राणावस्था से पदार्थावस्था की परस्परता में अनुबंध है। इनमें से मानव के अतिरिक्त सभी अवस्थाओं ने अपने अनुबंध को पूरकता विधि से प्रमाणित किया है। क्योंकि पदार्थावस्था के अनंतर प्राणावस्था, पदार्थावस्था प्राणावस्था के अनंतर जीवावस्था, पदार्थावस्था प्राणावस्था जीवावस्था के अनंतर ज्ञानावस्था का प्रार्दुभाव, प्रकाशन इस धरती पर हुआ है। इस धरती पर मानव की समझ में यह भी आता है कि जीवावस्था, प्राणावस्था और पदार्थावस्था परस्पर पूरक हैं। वे सब मानव के लिए पूरक है हीं; पर बीसवीं शताब्दी के अंत तक मानव ने जो कुछ किया है, उससे मानव का अन्य तीनों अवस्थाओं की प्रकृति के साथ पूरक होने के स्थान पर विरोधी होना व विद्रोही होना प्रमाणित हुआ है। इसका प्रमाण प्रबुद्घ विकसित कहलाने वाले लोगों की ही आवाज है कि:-

1. प्रदूषण बढ़ गया जबकि प्रदूषण का कारक तत्व केवल मानव हैं।

2. धरती पर वातावरण असंतुलित हो गया है, बिगड़ रहा है।

3. समुद्र में पानी का सतह बढ़ने लगा है।

4. वन संपदा उजड़ गया है।

5. ऋतु असंतुलित हो रहे है।

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