है कि मानवत्व किस प्रकार से त्राण और प्राण हैं। इस परीक्षण से यह पता लगा है कि मानवत्व (मानव में, से, के लिए व्यवस्था सूत्र) ही जीवन त्राण का स्वरुप हैं। दूसरी भाषा में जागृति सहज जीवन बल का स्वरुप हैं। समाधान, समृद्घि, अभय, सहअस्तित्व इस प्रेरणा का स्वरुप हैं। इस ढंग से मानवत्व की प्रेरकता और कारकता अथवा त्राण स्पष्ट होता है। त्राण से ही प्रेरणायें बलवती और फलवती होती हैं। प्रेरणाओं को फलवती होना ही त्राण की तृप्ति है। इस प्रकार त्राण और प्राण, पूरकता विधि से कार्य करते हुए, यह प्रमाण स्वयं में, स्वयं से, स्वयं के लिए प्रमाणित होता है। यही जीवन सहज दसों क्रियाओं में सामरस्यता, समाधान और व्यवस्था का प्रमाण हैं। इस प्रकार सहअस्तित्व में जीवन के समाधान सहज रूप में प्रमाणित होने की संभावना स्पष्ट होती है और इसे प्रमाणित कर देखा गया है।
मानव में समाधान परंपरा प्रामाणिकता पूर्ण परंपरा ही वैभव है। ऐसी सहज परंपरा क्रम में प्रत्येक मानव ऐसी परंपरा में अर्पित होकर, जो एक व्यक्ति ने परम ज्ञान, परम दर्शन एवं परम आचरण किया है, उसे सभी व्यक्ति पा सकते है, आचरण कर सकते हैं। इसी के आधार पर मानव परंपरा में समाधान, समृद्घि, अभय, सहअस्तित्व प्रमाणित हैं। सहअस्तित्व को जो एक व्यक्ति प्रमाणित करता है, उसे प्रत्येक व्यक्ति प्रमाणित कर सकता है। जो एक व्यक्ति “परम-त्रय” के आधार पर व्यवहार में सामाजिक, व्यवसाय में स्वावलबन को प्रमाणित करता है, उसे प्रत्येक व्यक्ति प्रमाणित कर सकता है। जो एक व्यक्ति में स्वयं के प्रति विश्वास, श्रेष्ठता के प्रति सम्मान, प्रतिभा और व्यक्तित्व में संतुलन, “परम-त्रय” के आधार पर प्रमाणित करता है, उसे प्रत्येक व्यक्ति प्रमाणित कर सकता है। यही मानव परंपरा का संस्कारानुषंगी गरिमा, महिमा और वैभव हैं।
अभी इस क्रम में अर्थात् उपरोक्त कहे गये क्रम में, अस्तित्व में कुछ और अवस्था जुड़कर अथवा पाँचवीं अवस्था जुड़कर सर्व कल्याण मार्ग प्रशस्त होने की कल्पनाओं को क्यों नहीं किया? इसके उत्तर में इस बात को स्पष्ट किया कि:-
1. प्रत्येक मानव जागृत होना चाहता है।
2. प्रत्येक मानव जागृत होने के लिए “परम-त्रय” विधि को अपना सकता है।
3. प्रत्येक व्यक्ति जागृति और प्रामाणिकता पूर्वक ही व्यवस्था है और व्यवस्था में भागीदारी कर सकता है।
4. प्रत्येक मानव में “परम-त्रय” विधि से जागृति समीचीन है।
इसलिए और कोई आगे अवस्था पैदा होगी, उस समय में अर्थात् कल्पनातीत लंबे समय के बाद सर्वशुभ होने का दिन आवेगा, तब तक अपनी हविश पूरी कर लेवें। इस प्रकार की मनोगतवादी विधि से अपराधों