1.0×

को अपनाने को, इसे सवैध मानने की हठवादिता को त्याग देना चाहिए। मानवीयता में संक्रमित होना चाहिए और जागृत परंपरा को स्थापित कर लेना चाहिए। जिसमें मानवीयता पूर्ण शिक्षा, मानवीयता पूर्ण संविधान, परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था जिसमें सबकी भागीदारी को पा लेना ही सर्व शुभ स्थिति का, गति का प्रमाण हैं। यह मानव के लिए समीचीन है, इसीलिए मानवीयता में परिवर्तित होने की सहज सहमति सर्वाधिक मानव में प्रस्तुत है ही। अभी तक अव्यवस्था पर आधारित शिक्षा तथा परंपरा से छुटकारा पाने का विकल्प नहीं रहा है, इसीलिए सर्वाधिक मानव छटपटाते आया है। इस तरह जिस विकल्प की तलाश था, वह आ चुका है और किसी अवस्था के इंतजार की आवश्यकता नहीं है।

किसी अवस्था को कम किया जाये, ऐसी कल्पना हो सकती है, पर इससे कम करना भी संभव नहीं हैं। मूलत: अस्तित्व ही चारों अवस्थाओं का स्वरुप है, चारों अवस्थाएँ इस धरती पर साकार हो चुकी है। इसमें संपूर्ण दृश्य , दृष्टा और दृष्टि की संभावना अर्थात् दृष्टि की क्रियाशीलता सभी संभावित हो गई हैं। इतना ही नहीं, यह अविभाज्य रूप में समीचीन हो गया है।

इसमें से किसी एक को अलग करने की कल्पना, यदि-

1. पदार्थावस्था को अलग करें तो यह धरती ही नहीं दिखेगी।

2. प्राणावस्था को अलग करने की कल्पना करें तो वन, वन्य- प्राणी और मानव नहीं दिखेंगे।

3. जीवों को अलग करने की कल्पना करें, उस स्थिति में अनेक प्रकार के रोग और उपद्रव होंगे, वनस्पतियों को नष्ट करने वाले, मानव को रोगी बनाने वाले तत्व निर्मित हो जावेंगे।

4. मानव को अलग करने की कल्पना देखें, तब अस्तित्व में दृष्टा पद का वैभव इस धरती पर दिखेगा नहीं।

सर्वमंगल, सर्वशुभ और समग्र अभिव्यक्ति का संयोग ही अथवा सज जाना ही समग्र घटना है । ऐसी घटना संपन्न इस धरती में “मानव ही अनुभवपूर्वक दृष्टा है।” दृष्टा पद को समृद्घ कर पाना ही जागृति है। जागृतिपूर्वक ही मानव परंपरा व्यवस्था है और यह व्यवस्था के रूप में वैभवित हो पाता है। इसीलिए मानव परंपरा को जागृत होने की आवश्यकता है, न कि किसी अवस्था को घटाने की। किसी अवस्था को घटाने पर सर्वशुभ की कल्पना नहीं हो पाती, इसलिए मानव का सहज वैभव, जागृति में ही है। मानव परंपरा के जागृत होने के लिए आवश्यकीय प्रेरणा, समीचीन हो चुकी हैं। उसमें से एक भाग यह “समाधानात्मक भौतिकवाद” है।

जागृति पूर्वक ही मानव, चेतना (ईश्वर), संचेतना, चैतन्य वस्तुओं को पहचान पाता है तथा जानता है, मानता है और उसके तत्व बिंदु को प्रमाणित करता है। मूलत: चेतना में संचेतना, चैतन्य, भौतिक-रासायनिक

Page 96 of 217
92 93 94 95 96 97 98 99 100