1. 8.14 जागृति जीवन में, से, के लिए सहज प्रतिष्ठा है। शरीर रचनानुसार वंश रूप में स्पष्ट है। मानव धर्म सुख है क्योंकि जीवन नित्य है। मानव धर्म जागृतिपूर्वक प्रमाण व अक्षुण्ण है। जीवन सहअस्तित्व में अनुभवपूर्वक प्रमाण है। मानव तथा जीवों की शरीर रचना के मूल में रसायन द्रव्य प्राण कोषा के रूप में है। यह रसायन भौतिकता का वैभव है।
  2. 8.15 जानना, मानना, पहचानना, निर्वाह कर पाना जीवन और शरीर के संयुक्त रूप में, से, के लिए होता है न कि केवल शरीर या जीवन में, से, के लिए। इसलिए संयुक्त रूप से मानसिकता को परस्परता में पहचानने का आधार है।
  3. 8.16 हर मानव समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व में, से, के लिए प्रमाणित रहना ही सर्वशुभ है।
  4. 8.17 जागृति सहज परंपरा ही सम्पूर्ण मानव सहज वर्चस्व है।
  5. 8.18 जीवन में सम्पूर्णता अनुभव मूलक अभिव्यक्ति सम्प्रेषणा प्रकाशन ही जागृति है।
  6. 8.19 जीवन वर्चस्व जागृति है।
  7. 8.20 जीवन सार्थकता जागृति है।
  8. 8.21 जीवन प्रमाण जागृति है।
  9. 8.22 जीवन सहज ऐश्वर्य वैभव के रूप में जागृति है।
  10. 8.23 जीवन ही मानव परंपरा में जागृति क्रम में अथवा जागृतिपूर्वक होना पाया जाता है।
  11. 8.24 मानव परंपरा में भी जीना जीवंतता पूर्वक पीढ़ी से पीढ़ी निरंतर क्रिया-प्रक्रिया है।
  12. 8.25 स्व निरीक्षण परीक्षणपूर्वक ही समझ, जागृति और स्वयं में विश्वास होना पाया जाता है।
  13. 8.26 हर नर-नारी में समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी सहज प्रमाण प्रस्तुत करने का समान अधिकार है जो सार्वभौम है। यह अधिकार कायिक, वाचिक, मानसिक, कृत, कारित, अनुमोदित भेदों से प्रमाणित होता है। यही विधि सूत्र है।
  14. 8.27 जीवन ज्ञान पूर्वक स्व-स्वरूप में विश्वास दृढ़ता ही दृष्टा पद प्रतिष्ठा है।
  15. 8.28 दृष्टा पद प्रतिष्ठापूर्वक सहअस्तित्व दर्शन ज्ञान, मानवीय आचरण में, से, के लिए दृढ़ता, प्रक्रिया, प्रयोजन मूल्यांकन होता है।
  16. 8.29 दृष्टा पद जागृति ही समझदारी का प्रमाण है।
  17. 8.30 समझदारी, ईमानदारी का संयुक्त प्रमाण ही ज्ञान-विवेक-विज्ञान सहज प्रमाण है।
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