1. 7.19 ज्ञान सम्पन्नता सहज प्रमाण ही जागृति पूर्ण दृष्टि, दृष्टा पद सहज अभिव्यक्ति व प्रमाण और परंपरा में, से, के लिए त्राण व प्राण है।
  2. 7.20 समझदारी जीवन ज्ञान, मानवीयता पूर्ण आचरण ज्ञान, सहअस्तित्व रूपी अस्तित्व दर्शन ज्ञान है।
  3. 7.21 समझदारी के अनुसार विवेक-विज्ञान से सम्पन्नता जागृत मानव सहज निर्णय व विचारों के रूप में है।
  4. 7.22 जिम्मेदारियाँ संबंधों के आधार पर है।
  5. 7.23 भागीदारी अखण्ड समाज सार्वभौम व्यवस्था में, से, के लिए है।
  6. 7.24 मानव में, से, के लिए सहअस्तित्व ज्ञान-विवेक-विज्ञान पूर्वक ही नित्य व नैसर्गिक और मानव के साथ विधिवत जीना सहज है।
  7. 7.25 मानव परंपरा में शुभ कामना सहज है।
  8. 7.26 अस्तित्वमूलक मानव केन्द्रित चिंतन बनाम “मध्यस्थ दर्शन” सहअस्तित्ववाद मानव जीवन ज्ञान, अस्तित्व दर्शन ज्ञान, मानवीयता पूर्ण आचरण ज्ञान सम्पन्न होने की सूत्र व व्याख्या है। यह अध्ययन पूर्वक बोध अनुभव सम्पन्न होना समीचीन है।
  9. 7.27 सहअस्तित्ववादी दृष्टि में, से, के लिए सम्पूर्ण अध्ययन है।
  10. 7.28 अस्तित्व क्यों? कैसा है? का उत्तर तर्कसंगत विधि से व्यवहार प्रमाण रूप में है। कितना है? का उत्तर आवश्यकता से अधिक है।
  11. 7.29 अस्तित्व कैसा है? सहअस्तित्व रूप में है।
  12. 7.30 क्यों है? का उत्तर विकास क्रम, विकास, जागृति क्रम, जागृति के रूप में, से, के लिए नित्य वर्तमान होने-रहने के लिए है।
  13. 7.31 सहअस्तित्व में जागृत मानव सहज आवश्यकता से अधिक उत्पादन होना ही जागृति सहज मानवीयता नित्य समीचीन है। इसका नित्य संभावना स्पष्ट है।
  14. 7.32 अस्तित्व कैसा है? यह चार अवस्था और चार पदों में स्पष्ट है। यही क्यों कैसे का उत्तर है।
  15. 7.33 हर मानव ‘है’ का अध्ययन करता है। ‘होना’ ही ‘है’ के रूप में वर्तमान है।
  16. 7.34 ‘होना’ और ‘है’ निरंतरता के अर्थ में रहना स्पष्ट है निरंतरता सूत्र अर्थात् व्यापक वस्तु में सम्पृक्त प्रकृति सम्पूर्ण एक-एक अथवा चारों अवस्था, चारों पद सम्पृक्त हैं। यही सम्पूर्ण अस्तित्व है।
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