- 9.31 सर्वशुभ कार्य व्यवहार ही अखण्डता सार्वभौमता है। यही मंगल मैत्री सूत्र व्याख्या है।
- 9.32 समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व सहज प्रमाण ही सर्वशुभ परंपरा है।
- 9.33 जागृतिपूर्वक अनेक जाति, मत, सम्प्रदाय व धर्म वाले भी अखण्ड समाज के अर्थ में प्रमाणित होना समीचीन है।
- 9.34 जागृतिपूर्वक जीने वाले हर नर-नारी अखण्ड समाज, सार्वभौम व्यवस्था सूत्र व्याख्या को प्रमाणित करते हैं। यही सर्वशुभ है।
- 9.35 बहुआयामी प्रवृत्ति ही विविधता का आधार है। जागृतिपूर्वक सभी आयामों में समाधान प्रमाणित होता है यही एकता का आधार है।
- 9.36 सभी अवस्थाओं में प्रत्येक एक व्यापक वस्तु में संपृक्ततावश पहचान (परस्परता) निर्वाह ही स्वयंस्फूर्त व्यवस्था है।
- 9.37 सर्वशुभ ज्ञान-विज्ञान, विवेकपूर्ण योजना कार्य-व्यवहारपूर्वक पाई जाने वाली सर्वतोमुखी समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व प्रमाण है। जागृति मानव परंपरा सहज वैभव व्यवस्था है।
12.10 स्वराज्य, स्वतंत्रता, स्वत्व
स्वराज्य : स्वयं में, से, के लिए जागृत मानव परंपरा सहज वैभव
(प्रबुद्धता, संप्रभुता, प्रभुता सहज प्रमाण परंपरा)।
स्वतंत्रता : स्वयं स्फूर्त विधि से मानव चेतना पूर्वक अक्षुण्णता, सार्वभौमता सहज सूत्र व्याख्या सहज प्रमाण परंपरा है।
स्वत्व : मानवत्व सहित व्यवस्था, समग्र व्यवस्था में भागीदारी।
- 10.1 प्रबुद्धता सहज प्रमाण सहअस्तित्ववादी, ज्ञान-विवेक-विज्ञानपूर्ण सर्वशुभ संगत समाधान पूर्ण प्रमाण है। संप्रभुता सर्वतोमुखी समाधान सम्पन्नता का प्रमाण और प्रभुसत्ता प्रबुद्धता पूर्ण सत्ता के रूप में अखण्ड समाज, सार्वभौम व्यवस्था ही वैभव है। यही स्वतंत्रता और स्वराज्य है।
- 10.2 स्वराज्य को प्रमाणित करने के लिए स्वयं स्फूर्त रहना ही स्वत्व स्वतंत्रता है। मानवत्व सहित व्यवस्था व समग्र व्यवस्था में भागीदारी करना स्वराज्य है।
- 10.3 संप्रभुता सर्वतोमुखी समाधान सम्पन्नता सहज प्रमाण है और प्रभुसत्ता प्रबुद्धता पूर्ण सत्ता (परंपरा) के रूप में अखण्ड समाज सार्वभौम व्यवस्था ही वैभव है यही स्वतंत्रता स्वराज्य है।