- 8.31 दृष्टा पद सहित जागृति में ही मानवत्व सहज प्रमाण है।
- 8.32 समझदारी पूर्ण प्रमाण सम्पन्नता ही दृष्टा पद है। यह परंपरा सहज देन है।
- 8.33 दृष्टा पद में ही जागृतिपूर्वक, सर्वतोमुखी समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व प्रमाणित होता है। यही प्रखरता है।
- 8.34 दृष्टा पद में स्वयं स्फूर्त विधिवत प्रवृत्तियाँ सर्वशुभ कार्य-व्यवहार में प्रमाणित होती है।
- 8.35 उत्पादन-कार्य संबंधों में निर्वाह विधि से किया गया कार्य-व्यवहार व व्यवस्था में भागीदारी में दृष्टा पद का प्रमाण व्यवस्था सहज रूप में स्पष्ट होता है।
- 8.36 दृष्टा पद प्रतिष्ठा में मानवीयता पूर्ण पहचान ही आधार व प्रमाण है।
- 8.37 दृष्टा पद प्रतिष्ठा ही जागृति सहज प्रमाण है।
- 8.38 दृष्टा पद सहज जागृति में ही ज्ञान, विवेक और विज्ञान का स्पष्ट प्रयोजन प्रमाणित होता है।
- 8.39 दृष्टा पद में जागृत मानव ज्ञातत्व, वक्तृत्व व कृत्तत्व सम्पन्न है।
- 8.40 दृष्टत्व-ज्ञातत्व सहज विधि से स्वत्व वक्तृत्व अविभाज्य है।
12.9 अखण्ड समाज, सार्वभौम व्यवस्था
अखण्ड समाज : मानव जाति, धर्म समझ, लक्ष्य समान होने के आधार पर।
सार्वभौम व्यवस्था : चारों अवस्थाएं व पदों के साथ मानव समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व में ‘जीने देना, जीना’ प्रबुद्धता, संप्रभुता व प्रभुसत्ता सहज प्रमाण है।
- 9.1 सहअस्तित्व सहज विधि से सर्वतोमुखी समाधान सहज सर्वशुभ ज्ञान, विचार, कार्य, व्यवहार, आचरण ही अखण्डता और सार्वभौमिकता सहज प्रमाण है।
- 9.2 जागृत मानव परंपरा में सार्थकता सहज प्रमाण अथवा मानवत्व सहज साक्ष्य रुपी अखण्ड समाज, सार्वभौम व्यवस्था और उसकी निरंतरता ही अक्षुण्णता है।
- 9.3 जागृत मानव परंपरा सहज सार्थकता के साक्ष्य में प्रबुद्धता, संप्रभुता, प्रभुसत्ता स्पष्ट होना आवश्यक है। यही सार्वभौमता, अखण्डता व अक्षुण्णता सहज सूत्र व्याख्या है।
- 9.4 प्रबुद्धतापूर्ण सत्ता रूप में अखण्ड समाज सार्वभौम व्यवस्था ही है। प्रबुद्धता ज्ञान, विवेक, विज्ञान सम्पन्नतापूर्ण प्रमाण परंपरा है।