1. 9.13 जागृत मानव (प्रत्येक नर-नारी) में, से, के लिए अनुभव प्रमाण, समाधान, सत्य, न्याय समान है।
  2. 9.14 जागृत मानव में, से, के लिए नियम, नियंत्रण, संतुलन समान है।
  3. 9.15 जागृत मानव परंपरा में जीवन सहज अक्षय बल, अक्षय शक्ति समझ समान है।
  4. 9.16 जागृत मानव परंपरा में जीवन ज्ञान समान है।
  5. 9.17 जागृत मानव परंपरा में प्रत्येक नर-नारी में, से, के लिए मौलिकता सहज स्वत्व स्वतंत्रता अधिकार समान है।
  6. 9.18 जागृत मानव परंपरा में मूल्य, चरित्र, नैतिकता सहज समानता है।
  7. 9.19 सर्व मानव में, से, के लिए जागृत जीवन समानता व्याख्या सूत्र ही अखण्ड समाज, सार्वभौम व्यवस्था का आधार है।
  8. 9.20 जागृत मानव परिभाषा के अर्थ में समान होता है।
  9. 9.21 जागृत मानव परिभाषा, व्याख्यानुरूप आचरण में समान और आचरण का प्रयोजन समान है।
  10. 9.22 मानवत्व सहित व्यवस्था व समग्र व्यवस्था में भागीदारी ही जागृति का प्रमाण है। यह प्रत्येक नर-नारी में, से, के लिए समान है।
  11. 9.23 अखण्ड सामाजिकता की स्वीकृति प्रत्येक नर-नारी में, से, के लिये होना आवश्यक है।
  12. 9.24 व्यवस्था दश सोपनीय विधि से सार्वभौम होना नित्य समीचीन है। इसमें प्रत्येक नर-नारी भागीदारी करना समान है।
  13. 9.25 सम्पूर्ण मानव जाति एक होने के कारण मानव कुल एक फलस्वरूप अखण्ड समाज और अखण्ड सामाजिकता सहज समझदारी का लोक व्यापीकरण आवश्यक है।
  14. 9.26 सम्पूर्ण मानव का सार्वभौम लक्ष्य सदा सदा के लिये समान है। यही परंपरा का आधार है।
  15. 9.27 सर्व मानव शुभ अखण्ड समाज सार्वभौम व्यवस्था में भागीदारी सम्पन्न होना ही वैभव है।
  16. 9.28 सुदरू विगत से मानव परंपरा की गतिविधि, घटनाओं के आंकलन से पता चलता है कि अखण्ड समाज, सार्वभौम व्यवस्था को पहचाना नहीं गया इसलिये विकल्प रुप में सहअस्तित्ववादी प्रस्तुति है।
  17. 9.29 अखण्डता सार्वभौमता ही वर्तमान में प्रमाण है।
  18. 9.30 मानवीय संस्कृति-सभ्यता-विधि-व्यवस्था ही सार्वभौमता व अखण्डता सहज सूत्र व्याख्या है।
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