10.4 स्वतंत्रता ही प्रबुद्धता व प्रभुसत्ता का प्रमाण है और मानवत्व सहित व्यवस्था व समग्र व्यवस्था में भागीदारी ही प्रभुसत्ता है। यही स्वत्व है, जागृत मानव परंपरा है।
10.5 ‘स्वत्व’ ही स्वतंत्रता व अधिकार को प्रमाणित करने का स्रोत है।
10.6 स्वायत्तता स्वयं स्फूर्त स्व अनुशासन रूपी स्वत्व स्वतंत्रता, स्वराज्य अधिकार वैभव है।
10.7 जागृत मानव सहज परंपरा में आवश्यकताएं सीमित होना, आवश्यकता से अधिक संभावना विद्यमान रहना फलस्वरूप समृद्धि होना समीचीन है।
10.8 आवश्यकता का निश्चय जागृत मानव परिवार में, से, के लिए होता है।
10.9 हर परिवार में आवश्यकताएं निश्चित होने के कारण ही आवश्यकता से अधिक उत्पादन सहज है।
10.10 हर मानव के लिए अनुभव प्रमाण सम्पन्न होना स्वत्व स्वतंत्रता अधिकार है।
10.11 स्वत्व के अनुरूप किया गया लक्ष्य व दिशा निर्धारण ही स्वतंत्रता है।
10.12 ज्ञान, विवेक, विज्ञान संपन्नता ही स्वत्व अविभाज्य सम्पदा है जो वैभव का आधार है।
10.13 स्वतंत्रता स्वयंस्फूर्त विधि से लक्ष्य व दिशा निर्धारण सहित प्रमाण क्रिया है जो आगे-आगे स्पष्ट योजना व प्रमाण कार्ययोजना गति का उदय सहज प्रवृत्ति है।
10.14 स्वायत्तता स्वयंस्फूर्त विधि से परिवार व्यवस्था ग्राम मोहल्ला स्वराज्य व्यवस्था में भागीदारी के रूप में स्पष्ट होती है। यही जागृति सहज प्रमाण है।
10.15 स्वत्व ही अधिकार या अधिकार ही स्वत्व, स्वतंत्रता ही विधि या विधि ही स्वतंत्रता, व्यवस्था ही मूल्य-चरित्र-नैतिकता या मूल्य-चरित्र-नैतिकता ही व्यवस्था है। इस प्रकार सर्वशुभ सर्वमानव में, से, के लिए समीचीन है।
12.11 ब्रह्म वर्चस्व
11.1 अखण्डता सार्वभौमता सहज रूप में मानवत्व प्रमाणित होना ही प्रज्ञा है। यही सत्यानुभूत ब्रह्मवर्चस्व है।
11.2 प्रज्ञा सहज प्रमाण ही मेधाविता, तेजस्विता, ओजस्विता और ब्रह्मवर्चस्वता है। अनुभव सहज प्रमाण, चिंतन साक्षात्कार सहज प्रमाण, ज्ञान-विवेक-विज्ञान संपन्नता सहित किया गया कार्य-व्यवहार फल-परिणाम ज्ञान सम्मत होने में दृढ़ता विश्वास ही प्रज्ञा है। ब्रह्मवर्चस्व है।
11.3 समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी, भागीदारी सहज धारक वाहकता ही वर्चस्व स्वयं स्फूर्त विधि है।