1. 12.5 मानवीय शिक्षा-संस्कार अनुभव प्रमाणमूलक होना समाधान है।
  2. 12.6 सर्व मानव का प्रमाण अनुभव-अभ्यास पूर्वक है।
  3. 12.7 अनुभव प्रमाण ही जागृति है।
  4. 12.8 अनुभव प्रमाण मूलक विधि से ही अनुभवगामी अध्ययन सुलभ सहज गति प्रभाव है।
  5. 12.9 मानव में, से, के लिए अध्ययन आवश्यकता है।
  6. 12.10 साक्षात्कार क्रिया के मूल में अनुभव प्रमाण, बोध, संकल्प ही नित्य स्रोत है क्योंकि जीवन नित्य है एवं जीवन में, से, के लिए अनुभव, प्रमाण क्रियाएं नित्य वर्तमान है।
  7. 12.11 सहअस्तित्व में अनुभव प्रकाश ही अनुभव बोध साक्षात्कार होता है।
  8. 12.12 जीवन में अनुभवमूलक साक्षात्कार क्रिया स्वयं में निरंतर समाधान है। यही चिंतन है।
  9. 12.13 अध्ययन का फल परंपरा नियम, नियंत्रण, संतुलन, न्याय, धर्म (समाधान), सत्य सहज अनुभव बोध क्रियाशीलता ही है। आचरण के रूप में नियम, कार्य व प्रभाव सीमा में नियंत्रण, प्रवृत्तियों के रूप में संतुलन, परस्पर तृप्ति के रूप में न्याय, समाधान सहज रूप में धर्म है। व्यापक में अनन्त नित्य वर्तमान शाश्वत, वैभव के रूप में सत्य बोध अनुभव-व्यवहार-प्रयोग प्रमाण है।
  10. 12.14 अपरिवर्तनीय अभिव्यक्तियाँ अनुभवमूलक है।
  11. 12.15 जीवन में, से, के लिए दस क्रियाओं में सामरस्यता अर्थात् अनुभवमूलक विधि सहज प्रमाण ही जागृति है।
  12. 12.16 सहअस्तित्व रूपी अस्तित्व में अनुभव प्रमाण ही सम्पूर्ण ज्ञान है।
  13. 12.17 सहअस्तित्व में, से, के लिए किया गया अनुभव मानव परंपरा में ही प्रमाणित होता है।
  14. 12.18 अनुभवमूलक व्यवहार, प्रयोग, क्रियाकलाप ही अभिव्यक्ति है जो अखण्डता व सार्वभौमता सहज व्यवस्था ही है।
  15. 12.19 व्यवस्थात्मक प्रमाण व्यवहार व आचरण है और व्यवस्था में ही सम्प्रेषणा, अभिव्यक्तियाँ प्रमाण रूप में स्पष्ट हैं।
  16. 12.20 सहअस्तित्व में अनुभव ही अभिव्यक्ति सूत्र है।
  17. 12.21 सहअस्तित्व में अनुभव सहज प्रमाण ही सम्पूर्ण जागृति, जागृतिपूर्ण जीवंतता है।
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