1. 13.13 जागृत मानव संस्कृति ‘जीने देने और जीने’ के अर्थ में सभ्यता है। यह मानवत्व है।
  2. 13.14 मानव ही न्याय धर्म सत्य सहज समझदारी पूर्वक मानवत्व सहित व्यवस्था में प्रमाणित होना पाया जाता है।
  3. 13.15 न्याय समाधान सहअस्तित्व पूर्वक प्रमाण होना ही जागृति और मानवत्व है।
  4. 13.16 मानवत्व जागृति सहज प्रमाण है।
  5. 13.17 मानवत्व व्यवस्था सहज सूत्र है।
  6. 13.18 मानवत्व मानव परंपरा सहज त्राण व प्राण है अर्थात् स्थिति गति है।
  7. 13.19 मानवत्व ही जीवन मूल्य व मानव लक्ष्य का सार्थक सफलतापूर्वक सार्वभौम रूप से वैभवित होने का नित्य सूत्र व स्रोत है। इसलिए हर नर-नारी समझदारीपूर्वक ईमानदारी, जिम्मेदारी, भागीदारी सहज विधि है।
  8. 13.20 शरीर और जीवन के सहअस्तित्व में ही जागृत मानव इकाई की पहचान है। यह मानवत्व है।
  9. 13.21 इस धरती पर रासायनिक भौतिक रचनाओं में, से, मानव शरीर रचना सर्वश्रेष्ठ रचना है क्योंकि मानव में, से, के लिये कल्पनाशीलता-कर्मस्वतंत्रता आदिमानव समय से होना स्पष्ट है।
  10. 13.22 मानव ही अपनी कल्पनाशीलता, कर्मस्वतंत्रता के आधार पर शिला युग, धातु युग, ग्राम कबीला युग तक, ग्राम कबीला युग से राजा राज्य युग तक, राजा राज्य सम्प्रदाय (धर्म) युग से लोकतंत्र गणतंत्र शासन आधुनिक युग तक पहुचें हैं और मानव चरित्र मूल्य और नैतिकता से सम्पन्न नहीं हो पाया इसलिए विकल्प सहज प्रमाण रूप में अस्तित्व मूलक मानव केन्द्रित चिंतन मध्यस्थ दर्शन सहअस्तित्ववाद प्रस्तुत हो चुका है।
  11. 13.23 निरीक्षण परीक्षण सर्वेक्षण क्रियाकलापों को सम्पन्न करने वाला मानव ही है।
  12. 13.24 मानव ही सम्पूर्ण आयाम, कोण, दिशा, परिप्रेक्ष्य, देशकाल का दृष्टा, ज्ञाता, कर्ता, भोक्ता के रूप में प्रमाणित होना ही जागृति है।
  13. 13.25 मानव बहुआयामी होने का तात्पर्य समस्त विधाओं में कल्पना, विचार, ज्ञान, विज्ञान, विवेकपूर्वक अभिव्यक्ति, सम्प्रेषणा, प्रकाशन करता है, करना चाहता है।

यह जागृति में, से, के लिए सहज प्रमाण है।

  1. 13.26 जागृत मानव में ही बहुआयामी समाधान प्रवृत्ति, दृष्टि, कार्य, व्यवहार होना पाया जाता है।
  2. 13.27 जानने, मानने, पहचानने, निर्वाह करने की प्रवृत्ति जागृत मानव में दृष्टव्य है।
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