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4.7 स्वतंत्रता

ज्ञान, विवेक, विज्ञान सम्पन्नता पूर्वक अखण्डता सार्वभौमता सूत्र व्याख्या स्वयं स्फूर्त होना ही सार्थक स्वतंत्रता है। यह जागृति सहज वैभव है।

4.7 (1) अखण्ड समाज

अखण्ड समाज = मानव जाति में एक, धर्म एक होने का ज्ञान, स्वीकृति व प्रमाण परंपरा ही मानवीय संस्कृति सभ्यता है। अखण्ड समाज के अर्थ में सार्वभौम व्यवस्था का प्रमाण परंपरा ही राष्ट्रीयता है।

4.7 (2) सहअस्तित्व

सहअस्तित्व ही नित्य प्रमाण वर्तमान है।

सहअस्तित्व = सत्ता में सम्पृक्त जड़-चैतन्य प्रकृति चार अवस्था व पदों में विद्यमान वर्तमान है।

नित्य प्रमाण = सामाजिक अखण्डता, व्यवस्था सहज सार्वभौमता।

वर्तमान = चारों अवस्थाओं व पदों में संतुलन पूरकता-उपयोगिता सहज वर्तमान है।

सहअस्तित्व सदा वैभव सहज प्रमाण सदा वर्तमान रूप में होना, मानव परंपरा में सदा प्रमाण होना, समझ सम्पन्नता सहित परंपरा ही वर्तमान होना वैभव है।

सहअस्तित्व में भौतिक, रासायनिक व जीवन क्रिया दृष्टव्य है, वर्तमान है। दृष्टा मानव है।

सहअस्तित्व में विकास क्रम, विकास, जागृतिक्रम, जागृति नित्य वर्तमान सहज होना दृष्टव्य है।

सहअस्तित्व ही नित्य वैभव है, क्योंकि व्यापक में एक-एक वस्तुओं का सम्पृक्त वर्तमान अविभाज्य रूप में होना रहता ही है। व्यापक वस्तु सर्व देशकाल में यथावत है।

व्यापक में ही सभी एक-एक वस्तुओं की परस्परता और निश्चित अच्छी दूरियाँ स्पष्ट है। व्यापक में प्रकृति न हो ऐसा कोई काल नहीं। व्यापक न हो ऐसा कोई देश काल नहीं है।

सहअस्तित्व नित्य प्रभावी है। व्यापक वस्तु में सम्पूर्ण एक-एक वस्तुएं परस्परता में ही पहचान है। एक दूसरे की पहचान ही संबंध और व्यवस्था का आधार है।

4.7 (3) राज्य

राज्य वैभव सहज रूप में हर अवस्था, हर पद, स्थिति गति के रूप में सहअस्तित्व में ही विद्यमान है। मानव जागृति पूर्वक अखण्डता सार्वभौमता सहज परंपरा के रूप में होना राज्य है।

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