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जागृत मानव प्रवृत्तियाँ (स्वभाव)

जन-धन-यश बल का सार्थक रूप परिवार रूप में ही दश सोपान में स्पष्ट होता है। हर जागृत मानव सहज पहचान दश सोपानीय परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था में होती है यथा समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व अर्थात् चारों अवस्थाओं के साथ जागृत मानव नियम, नियंत्रण, संतुलन, न्याय, धर्म, सत्य सहज विधि से निर्वाह करता है।

  • - परिवार संबंध मूल्यों के आधार पर
  • - उत्पादन संबंध उपयोगिता व कला श्रम मूल्यों के आधार पर
  • - व्यवस्था संबंध समाधान, समृद्धि व न्याय के आधार पर
  • - शिक्षा संबंध सर्वतोमुखी समाधान, समृद्धि, ज्ञान, विवेक, विज्ञान सम्पन्नता के आधार पर
  • - स्वास्थ्य संबंध आहार, विहार, औषधि, संयत व्यवहार के आधार पर
  • - प्रकृति संबंध नियम, नियंत्रण, संतुलन, उपयोगिता, पूरकता के आधार पर
  • - समझदारी का संबंध सहअस्तित्व रूपी अस्तित्व के आधार पर
  • - न्याय, संबंधों मूल्य निर्वाह के आधार पर
  • - विनिमय संबंध उपयोगिता पूरकतावादी दृष्टि व श्रम मूल्य के आधार पर
  • - मानव संबंध अखण्डता सार्वभौमता के आधार पर
  • - मानव लक्ष्य सहज प्रमाण में, से, के लिए सभी संबंध है
  • - ज्ञान, विवेक एवं विज्ञान सहित मानव लक्ष्य के लिए कार्य व्यवहार सहज निश्चयन शिक्षा-दीक्षा संस्कार में, से, के लिए है। विधि से सर्वशुभ प्रवृत्तियाँ हैं।

5.3 जागृत मानव में, से, के लिए स्वभाव (स्वयं स्फूर्त मूल्य)

धीरता = न्याय में दृढ़ता – न्याय प्रदायी योग्यता है।

वीरता = न्याय निर्वाह सहित लोकव्यापीकरण में निष्ठा

उदारता = स्वयं जैसे और अधिक श्रेष्ठता में, से, के लिए किये गये तन-मन-धन का अर्पण-सेवा)-समर्पण

अर्पण का तात्पर्य तन व धन से की गई सेवा, तन-मन-धन से किया गया उपयोग, सदुपयोग, प्रयोजनशीलता समर्पण है।

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