दया = पात्रता के अनुरूप वस्तु को उपलब्ध करना
कृपा = वस्तु के अनुरूप पात्रता को स्थापित करना
करुणा = पात्रता, योग्यता को स्थापित करना
5.4 जागृत मानव दृष्टि
संबंध निर्वाह = न्याय, सत्य सहज वैभव समाधान निरंतरता
न्याय = संबंधों में जागृति सहज प्रमाण सहित पहचानना, मूल्यों का निर्वाह करना, मूल्यांकन करना, उभयतृप्ति एवं संतुलन प्रमाणित होना
धर्म = सर्वतोमुखी समाधान पूर्वक दश सोपानीय व्यवस्था में भागीदारी
क्यों और कैसे के उत्तर को हर दृष्टिकोण, परिप्रेक्ष्य, आयाम से जानना, मानना फलत: हर स्थिति में समाधान प्रस्तुत करना, यही अभ्युदय है। यही सर्वतोमुखी समाधान है।
सत्य = सहअस्तित्व रूपी अस्तित्व में ज्ञान, विवेक, विज्ञान पूर्वक पहचानना निर्वाह करना।
- - जागृत मानव में धर्म सार्थक होता है।
- - मानव सुख धर्मी है।
- - जागृत मानव सर्वतोमुखी समाधान सम्पन्न होता है।
समाधान = सुख, समस्या = दु:ख
5.5 जागृत-मानव
जागृत मानव सत्ता में सम्पृक्त जड़-चैतन्य प्रकृति रूपी सहअस्तित्व में ज्ञान, विवेक, विज्ञान सहित पूर्णता अभ्युदय के अर्थ में नियंत्रित संचेतना सम्पन्न रहता है। जागृत मानव विकास क्रम, विकास, जागृति क्रम, जागृति और उसकी निरंतरता का ज्ञाता, दृष्टा, कर्ता होता है। संचेतना का स्वरूप संज्ञानीयता पूर्वक नियंत्रित संवेदनाओं सहित वैभव है।
जागृत मानव ही व्यापक सत्ता में सम्पृक्त जड़ चैतन्य प्रकृति को सहअस्तित्व के रूप में जानता, मानता, पहचानता और निर्वाह करता है।
न्याय, धर्म (सर्वतोमुखी समाधान) और सत्ता में सम्पृक्त जड़-चैतन्य रूपी सहअस्तित्व परम सत्य जागृत मानव में, से, के लिए प्रमाण है।