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जागृत मानव परंपरा में अनुभव प्रमाणों को प्रमाणित करने में जीवन जागृत रहता है। कल्पनाशीलता जागृति के अनुरूप कार्य करता है अर्थात् प्रमाणों के बोध सहित बुद्धि में संकल्प, संकल्प के अनुरूप चिंतन-चित्रण कार्य चित्त में सम्पन्न होता है। फलत: चित्रण के अनुसार तुलन-विश्लेषण होता है। पुनश्च प्रमाणों के आधार पर आस्वादन पूर्वक चयन क्रिया मन में सम्पन्न होती है। यही जागृति के अनुसार होने वाले परावर्तन प्रकाशन है।

आस्वादनायें प्रमाणों के प्रकाश में प्रकाशित होने के फलस्वरूप तृप्त, सन्तुष्ट समाधान के रूप में परावर्तन सहज है यही जागृत जीवन का फलन है।

जागृत मानव परंपरा में -

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