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जागृत मानव सहअस्तित्व में ही विकास क्रम, विकास, जागृति क्रम, जागृति परम का ज्ञाता, दृष्टा, कर्ता, भोक्ता होता है, यह समाधान है।

5.6 मानव

“जीवन बल व शक्तियाँ अक्षय है” जिस से जागृत मानव जानता, मानता, पहचानता और निर्वाह करता है।

हर मानव जीवन व शरीर का संयुक्त रूप में परंपरा (पीढ़ी से पीढ़ी के रूप में) में विद्यमान है।

शरीर गर्भाशय में भौतिक-रासायनिक द्रव्यों से रचित रहता है। जीवन गठनपूर्ण परमाणु चैतन्य पद में जागृति पूर्वक वैभव है।

जीवन इकाई, विकसित परमाणु, जीवन पद में गठनपूर्ण घटना के आधार पर अणु बंधन, भार बंधन से मुक्त, आशा विचार इच्छा बंधन युक्त है। जीवन जब जागृत हो जाता है तब जीवन अमर वस्तु के रूप में स्वीकृत होता है और जीवन शक्ति व बल अक्षय होना समझ में आता है।

5.7 जागृत जीवन क्रियायें :-

अक्षय बल

अक्षय शक्तियाँ

सहअस्तित्व रूपी अस्तित्व में अनुभव होता है।आत्मा में अनुभव बल, अनुभव बोध बुद्धि में बोध न्याय-धर्म-सत्य सहज स्वीकार बुद्धि बल में होता है। चित्त में चिंतन रूप में स्पष्ट होता है। वृत्ति में तुलन क्रिया में न्याय-धर्म-सत्य का स्पष्ट होना विश्लेषण सम्पन्न होता है। न्याय-धर्म-सत्य सम्मत मूल्यों का आस्वादन मन में सम्पन्न होता है। यह सदा-सदा होता है। इसलिए यही जागृति सहज मनोबल अक्षय है।

आत्म शक्ति प्रमाणिकता में प्रमाण, प्रमाणित करने के लिए संकल्प शक्ति बुद्धि शक्ति में, चित्रण क्रिया चित्त शक्ति में, प्रमाणित चित्रण करने में भाषा भाव (अर्थ) समेत चित्रण है। चित्रण जिसमें भाव भंगिमा मुद्रा अंगहार समाया रहता है। प्रमाणीकरण विधि-विधानों का विश्लेषण करना ही विचार है। प्रमाणित होने के लिए निश्चित विचारों के अनुसार संबंधों का चयन क्रिया कर पाने की आशा में, से, के लिए किया जाना स्पष्ट है।

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