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5.8 जागृत मानव परंपरा

जागृत मानव परंपरा में ही सार्वभौम लक्ष्य सहज दिशा प्रमाणित है। यह जीवन मूल्य रुपी सुख, शांति, संतोष, आनंद और मानव लक्ष्य रूपी समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व में अनुभव प्रमाण विधि से प्रमाणित होता है। जीवन व शरीर के संयुक्त रूप में हर मानव जागृति सहज प्रमाण है अथवा जागृत होना चाहता है। इसी प्रकार हर मानव समझदार है अथवा समझदार होना चाहता है। यह मौलिक अधिकार है क्योंकि मानव ही समझने वाला और होने के रूप में सहअस्तित्व ही है।

5.8 (1) सार्वभौम = ज्ञान, विवेक, विज्ञान रूप में मूल अवधारणा अनुभवमूलक विधि से प्रमाण सम्पन्न होना।

5.8 (2) सार्वभौमतापूर्ण = सर्वमानव स्वीकृत या स्वीकारने योग्य या सर्वमानव सुखी होना।

5.8 (3) जीवन = गठनपूर्ण परमाणु अथवा चैतन्य इकाई।

5.8 (4) जागृत जीवन = मानव परंपरा में जागृति सहज प्रमाणों को व्यक्त करने अनुभव मूलक विधि सहित प्रमाण पूर्वक, बोध साक्षात्कार सहित तुलन-विश्लेषण, आस्वादन-चयन समेत व्यवहार में, प्रयोगों में और व्यवस्था में प्रमाणित होना ही जागृत परंपरा है। जागृत परंपरा में ही दश सोपानीय व्यवस्था प्रमाणित होती है।

5.8 (5) सार्वभौम लक्ष्य = जीवन लक्ष्य, सर्वमानव लक्ष्य, विकास क्रम, विकास, जागृति क्रम, जागृति लक्ष्य यही समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व में अनुभव प्रमाण।

5.8 (6) जीवन लक्ष्य (मूल्य) = सुख (मनःस्वस्थता)

मानव में सुखी होने की अपेक्षा स्वीकृत है। मानव सुख धर्मी है।

हर मानव जीवन व शरीर का संयुक्त रूप है। मानव लक्ष्य समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व है।

समाधान प्रमाण = सुख

समृद्धि प्रमाण = शांति

अभय प्रमाण = संतोष

सहअस्तित्व में अनुभव प्रमाण = आनंद

5.8 (7) मानव धर्म अखण्ड समाज नीति = तन-मन-धन रूपी अर्थ का सदुपयोग और सुरक्षा मौलिक अधिकार स्वत्व स्वतंत्रता सहज वैभव है।

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