1.0×

अवधारणा = अवगत (पारंगत) होने, रहने में स्वीकृति और निष्ठान्वित, निष्ठा कारक होना यह प्रत्येक नर-नारी का मौलिक अधिकार है।

हर नर-नारी जानने, मानने, पहचानने, निर्वाह करने योग्य क्षमता सम्पन्न है क्योंकि हर मानव में, से, के लिए कल्पनाशीलता कर्म स्वतंत्रता विद्यमान है। इसे सार्थक रूप देना प्रत्येक नर-नारी का मौलिक अधिकार है।

5.10 जागृत मानव परंपरा में चरितार्थ प्रमाणित - संबंध व मूल्य

जीवन मूल्य = मानव धर्म = मानव लक्ष्य = समझदारी

जागृत मानव लक्ष्य = सुख-सर्वतोमुखी समाधान, शांति-समृद्धि, संतोष-अभय, आनंद-सहअस्तित्व में अनुभव प्रमाण सम्पन्नता यह प्रत्येक नर-नारी का मौलिक अधिकार है।

जागृत मानव परंपरा वैभव क्रम में मूल्याँकन सहज वर्तमान है।

सहअस्तित्व पूर्ण मानसिकता पूर्वक मूल्याँकन सार्थक होता है। जागृत मानव मूल्याँकन करता है, सर्वतोमुखी समाधान सम्पन्न मानव ही मूल्याँकन करेगा।

मानवीयता पूर्ण आचरण अर्थात् मूल्य, चरित्र, नैतिकता पूर्वक समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व मानव में, से, के लिए आचरण पूर्वक प्रमाणित होता है।

जागृत मानव ही अपने आचरण, कार्य-व्यवहार, फल-परिणाम से ही समाधान, समृद्धि, सुख, शांति परंपरा वर्तमान होना, रहना सहज है।

जागृत मानव परंपरा में चरितार्थ संबंध, मूल्य, मूल्यों का निर्वाह और मूल्याँकन प्रमाण सम्बन्धो में होता है। हर जागृत मानव प्रमाणित करता है। समस्त मूल्य जीवन मूल्य, मानव मूल्य, स्थापित मूल्य, शिष्ट मूल्य, उत्पादित वस्तु मूल्य (प्राकृतिक ऐश्वर्य पर श्रम नियोजन पूर्वक उपयोगिता व कला मूल्य स्थापना अर्थात् उत्पादन) अर्थात् श्रम नियोजन पूर्वक वस्तु मूल्य उपयोगिता-कला के रूप में है।

प्राकृतिक वैभव = सहअस्तित्व में पूरकता, उपयोगिता।

सहअस्तित्व नित्य प्रभावी है इसलिए प्राकृतिक ऐश्वर्य का मूल्य शून्य है।

प्रकृति ही धरती, हवा, पानी, पहाड़, समुद्र, नदी, नाला, जंगल, जीव, जानवर वस्तुएं हर मानव के सम्मुख दृश्य रूप में है।

Page 41 of 212
37 38 39 40 41 42 43 44 45