स्वीकृतियाँ जानने व मानने के रूप में, सोच-विचार-निर्णय विवेक-विज्ञान के रूप में, आचरण (कार्य-व्यवहार) मानवीयता के रूप में पहचान-निर्वाह के रूप में, व्यवस्था स्वयं स्फूर्त कर्त्तव्य-दायित्व रूप में, संस्कृति उत्सव के रूप में, स्वीकृतियाँ जागृत समाज परस्पर अर्पण समर्पण के रूप में, सभ्यता व्यवस्था में भागीदारी के रूप में, संविधान आचरण के अर्थ में, व्यवस्था सार्वभौमता (सर्व शुभ व स्वीकृति) के रूप में न्याय है।
7.3 उत्पादन कार्य व्यवस्था समिति
उत्पादन :- उपाय (तकनीकी) सम्पन्नता सहित प्राकृतिक ऐश्वर्य पर श्रम नियोजन पूर्वक उपयोगिता व कला मूल्य सम्पन्न सामान्य व महत्वाकाँक्षा संबंधी वस्तुयें मनाकार को साकार करने के लिए निपुणता, कुशलता, पांडित्य सहित उत्पादन है।
श्रम नियोजन कार्य उपाय (तकनीकी) सहित पदार्थ, प्राण, जीवावस्था पर श्रम नियोजन पूर्वक सामान्य आकाँक्षा व महत्वाकाँक्षा संबंधी वस्तुओं को पाना उत्पादन संबंध, परिवार सहज विधि से है।
व्यवस्था :- जागृति सहज विधि से अखण्ड समाज, सार्वभौम व्यवस्था में भागीदारी है।
ऐश्वर्य :- पदार्थावस्था, प्राणावस्था, जीवावस्था प्राकृतिक ऐश्वर्य वस्तु के रूप में वैभव है।
सामान्य आकाँक्षा :- आहार, आवास, अलंकार संबंधी वस्तुएं है।
महत्वाकाँक्षा :- दूरश्रवण, दूरदर्शन, दूरगमन संबंधी यंत्र-उपकरण के रुप में है।
उत्पादन का प्रयोजन :- शरीर पोषण-संरक्षण, समाज गति में, से, के लिए वस्तुओं का उपयोग, सदुपयोग, प्रयोजन स्पष्ट है।
(प्रतीकमुद्रा - स्वयं में वस्तु का प्रतीक होता है। सिद्ध है कि प्रतीक प्राप्ति नहीं है।)
आवश्यकता का निश्चयन :- समझदार मानव परिवार में ही स्पष्ट होता है।
7.3 (1) उत्पादन-कार्य व्यवस्था
- 1. उत्पादन कार्य सहज क्रियाकलाप, जागृत मानव परंपरा में, से, के लिए निपुणता, कुशलता, पांडित्य पूर्वक प्राकृतिक ऐश्वर्य पर श्रम नियोजन सहज सामान्य व महत्वाकाँक्षा संबंधी वस्तुओं, उपकरणों उपयोगिता व कला मूल्य को प्रमाणित करने के रूप में पहचान होता है।
सामान्य आकाँक्षा संबंधी वस्तुओं की आहार, आवास, अलंकार संबंधी वस्तुओं के रूप में पहचान है। कृषि व पशु पालन के लिये आवश्यकीय उपकरणों को अधिकतर कृषक अपने हाथों, पड़ोसियों की