सीमित है । इस नजरिये से समृद्धि की ओर हमारा ध्यान जाता है । इसका स्रोत परिवार की आवश्यकता से अधिक उत्पादन होना ही है ।
उक्त विधि से परिवार की आवश्यकता निर्धारण, परिवार में ही एक या एक से अधिक व्यक्ति, परिवार सहज आवश्यकता से अधिक उत्पादन करने का सामर्थ्य रखता है । समझदार परिवार होने के उपरान्त एक ही परिवार में 2-4 व्यक्ति ऐसी उत्पादन क्षमता वाले हो जाते हैं । जब परिवार की आवश्यकता से अधिक उत्पादन होता है, तब समझदार परिवार में समाधान समृद्धि प्रमाणित होने का सौभाग्य उदय होता है । इससे यह परिवार जनों के लिए प्रसन्नता और विश्वास से संपन्न होना बन जाता है । परिवार के हर सदस्य अपने में विश्वास करने योग्य हो जाते हैं । स्वयं में विश्वास होने से ही श्रेष्ठता का सम्मान होना, समझदारी का प्रमाण होना, समझदारी संपन्नता के प्रमाण में व्यक्ति का व्यवहार में सामाजिक और व्यवसाय में स्वावलंबी होने का प्रमाण अपने आप में उदय होता है । ऐसी उदयशीलता मानव के ज्ञानावस्था की इकाई होने का फलन है । सहअस्तित्व रुपी अस्तित्व निरन्तर है । इसलिए दर्शन ज्ञान निरन्तर है, जीवन निरन्तर है, इसलिए जीवन ज्ञान निरन्तर है । मानवीय आवश्यकता निरन्तर है, इसलिए मानवीय आवश्यकता ज्ञान निरन्तर है । इन्हीं ज्ञान राशि के आधार पर विवेक संपन्न विज्ञान, विज्ञान संपन्न विवेक विधि से जीवन लक्ष्य और मानव लक्ष्य प्रमाणित होने की विधि का निश्चयन करना ही संपूर्ण सहअस्तित्व वादी प्रबंध, शास्त्र, विचार, और दर्शन है, यही अस्तित्वमूलक मानव केन्द्रित चिंतन ज्ञान, मध्यस्थ दर्शन है ।
इस क्रम में हर आयाम में दर्शन, विचार, शास्त्र, ज्ञान से संपन्न होने की अनवरत सम्भावना बनी ही है । इसीलिए मानव परंपरा का जागृत होना एक अवश्यम्भावी स्थिति है । इसके लिए अस्तित्व सहज प्रेरणा ज्ञानावस्था के मानव में प्रमाणित है, नित्य प्रभावी है । इसलिए मानव सोचने, समझने, प्रमाणित होने में प्रयत्नशील है । इस क्रम में ही मानव का अभ्युदय प्रमाणित हो जाता है । मानव का अभ्युदय अपने स्वरुप में सर्वतोमुखी समाधान अर्थात् सम्पूर्ण समाधान के रुप में ही प्रमाणित हो जाता है । सम्पूर्ण ज्ञान ही सम्पूर्ण समाधान है । क्योंकि ज्ञान के आधार पर ही विज्ञान और विवेक सम्मत समाधान, निर्णयों के रुप में निकलती है । यह अजस्त्र क्रिया है, अनवरत, सदा-सदा क्रिया है ।
यह तथ्य स्पष्ट हो गया है कि मानव समझ के आधार पर परावर्तन होने के क्रम में अनुभव प्रमाणों को प्रस्तुत करता है, जिसके फलन में जीवनाकाँक्षा, मानवाकाँक्षा प्रमाणित होना स्पष्ट होता है।