इसके साथ यह भी स्पष्ट होता है कि अनुभव मूलक विधि से समझे हुए कोे समझाने, सीखे हुए को सिखाने, किये हुए को कराने की विधियाँ अनुभवमूलक परावर्तन से सार्थक होती हैं । इसी क्रम में जो कुछ भी मानव का उत्पादन है, वह उसका परिवार की सीमा में उपयोग, समाज के अर्थ में सदुपयोग और सार्वभौम व्यवस्था के अर्थ में प्रयोजनशील होना इंगित हो चुका है । यह भी इंगित हुआ है कि मानव की आवश्यकतायें शरीर पोषण, संरक्षण, समाज गति की सीमा में है । समाज गति अपने में अखण्ड समाज और सार्वभौम व्यवस्था का संयुक्त गति है । अखण्ड समाज अपने में पहले से सुस्पष्ट हो चुका है ।

सभी परिवार समाधान, समृद्धि सम्पन्नता के उपरान्त वस्तुओं को कहाँ नियोजित करेंगे, यह प्रश्न समान रुप में उदय होता ही है । इसमें यह इस प्रकार से अनुभव किया गया है कि मानव परिवार में समाधान, समृद्धि सम्पन्न होने के उपरान्त उपकार प्रवृत्ति उदय होती है । समझदार परिवार का जनप्रतिनिधि ही समग्र व्यवस्था में भागीदारी करेगा । समाज गति के लिए जो कुछ भी वस्तुएँ नियोजित होती हैं, ये सब समृद्ध परिवार से ही प्रदत्त रहता है । यहाँ तक हर हालत में, अर्थात् कितने भी जागृत होने के उपरान्त भी, नियोजन होता ही है । इस प्रकार समाज गति के साथ ही व्यवस्था को मानव प्रमाणित कर पाते हैं । व्यवस्था में भागीदारी करता हुआ एक जन प्रतिनिधि, किसी परिवार का ही रहेगा । उनके शरीर पोषण, संरक्षण और समाज गति के लिए जितने भी वस्तुयें चाहिए, वह सब समझदार समृद्ध परिवार द्वारा प्रदत्त रहेगा । इस प्रकार हर परिवार से समाज गति में भागीदारी, योगदान और वस्तुओं का उपयोग, सदुपयोग, प्रयोजन अपने आप में सुनिश्चित रहता है । इसी स्थिति गति में वैभवित, जागृत मानव परंपरा के रुप में होना पाया जाता है ।

जागृत मानव सहज परावर्तन प्रत्यावर्तन क्रियाकलाप विधा में कुछ मुद्दों पर अध्ययन करने की आवश्यकता को अनुभव करते हुए प्रस्तुत किया गया । परावर्तन प्रत्यावर्तन क्रियाओं का मूल आशय हर मानव अर्थात् हर नर-नारी में स्वस्थ, सुन्दर, सुखद, सौभाग्य सम्पन्नता पूर्वक जागृति का प्रमाण प्रस्तुत करने के अर्थ में पहचाना गया है । परम सौभाग्य को हर मानव में जागृति, समझ, ज्ञान, विज्ञान, विवेक के रुप में पहचान होना एक सहज क्रिया है । सुखद स्थिति गति का प्रमाण समाधान, समृद्धिपूर्वक परस्पर पहचान होना, विश्वास होना पाया जाता है । सुखी होने का विश्वास भी समाधान समृद्धि के आधार पर हो पाता है । सुन्दरता को हम जागृत मानव परम्परा में व्यक्तित्व के रुप में पहचानते हैं, व्यक्तित्व अपने में समझदारी के अनुरुप किया जाने

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