व्यवहार व्यवस्था में जीने से, जीवनाकाँक्षा मानवाकाँक्षा को प्रमाणित करने से है । इसीलिए हर शब्द को सार्थकता के अर्थ में प्रयोग करना जरुरी है ।
विद्युत चुम्बकीय तरंग को मानव, प्राकृतिक विधि से बिजली चमकता हुआ रुप में या प्रकाश के रुप में देखता है । इसके मूल में निश्चित दूरी में बादल के रुप में, निश्चित अच्छे घने बादल का, अपने निश्चित अच्छी दूरी में से, पास में आने से हुई ध्वनि को ही बादल गरजना कहा जाता है । इन दोनों के पास में आने से धरती के संयोजन के साथ, धरती का संबंध जुड़ने के साथ, विद्युत प्रवाह अपने आप दौड़ता है, जिसका प्रवाह जीव, जानवर, मानव, पेड़, पौधे के ऊपर देखा गया । यही प्राकृतिक रुप में देखा हुआ, बिजली प्रकाश और प्रभाव है । बिजली प्रकाश राहगीर को राह देखने के रुप में तो दिखी लेकिन प्रवाह का और कोई सकारात्मक पक्ष में प्रयोग नहीं हुआ । इन दोनों स्थिति को देखा हुआ मानव यह क्या है? कैसा है? बहुत कुछ सोचा, समझा । अन्ततोगत्वा चुम्बकीय धारा का विखंडन विधि से, जिसको डायनामो कहा जाता है, साइकिल के चक्के के साथ घुमा कर प्रकाश को प्राप्त किया । इसके बाद क्रम से धरती पर सभी जगह तक बिजली प्रवाह को दौड़ता हुआ, कार्य करता हुआ, सब प्रदर्शित है ।
- विद्युत धारा में घोषित विश्लेषण दो मुद्दों पर हैं ।
1. विद्युत धारा का स्रोत और
2. धारा, प्रवाह में होने वाली क्रियाकलाप
विद्युत प्रवाह के मूल में चुम्बकीय धारा के विखंडन के बराबर में विद्युत धारा होना, विद्युत धारा चुम्बकीयता से मुक्त न होना, फलतः चुम्बकीय विद्युत धारा का नामकरण होना सार्थक पाया जाता है । इसमें धारा के साथ परमाणु अंश दौड़ती रहती है । ऐसी परिकल्पना दी गई । वास्तविकता रुप में यदि परीक्षण करने के लिए तत्पर हो जाये तो हम यह पाते हैं हर माध्यम में स्वभाव गति के रुप में जो अणुओं का संकोचन प्रसारण बना रहता है, विद्युत प्रवाह के माध्यम होने की स्थिति में वह संकोचन प्रसारण बढ़ जाता है । संकोचन प्रसारण विधि से ही प्रवाह और दबाव बनी रहती है । संकोचन विधि से दबाव , प्रसारण विधि से प्रवाह होता हुआ देखने को मिलता है । इसी क्रम में दौड़ता हुआ विद्युत प्रवाह अपने निकटवर्ती वातावरण में जितने भी विरल वस्तुयें रहते हैं उन पर अपना प्रभाव प्रसारित करता है फलस्वरुप विद्युत धारा के साथ-