है) सहित दौड़ता है । यही तरंग के नाम से जाना जाता है । विरल वस्तु में शब्द, ताप, विद्युत, किरण, विकिरण तरंग रूप में प्रमाणित होते है ।
विद्युत तरंग- यह चुम्बकीय धारा के विखंडन से उत्पन्न प्रवाह है । चुम्बकीय धारा जिन छोटे-छोटे रुप में विखंडित हो पाते हैं, वे टुकड़े किसी माध्यम से सम्प्रेषित होते हैं, अर्थात् दौड़ते हैं । माध्यम के बारे में, संपूर्ण प्रकृति विद्युत धारा का धारक वाहक होना पाया जाता है । संपूर्ण प्रकृति विद्युत ग्राही है, कम से कम या अधिक से अधिक । यह कम या अधिक होना दबाव, प्रवाह, मात्रा विधि से तय होता है ।
ध्वनि तरंग- ध्वनि और भाषा तरंग, ध्वनि एक से अधिक वस्तुओं के संघर्ष से, एक में होने वाली स्वयं स्फूर्त क्रिया से ध्वनि होना पाया जाता है । इसके प्रयोग में कोई दो पत्थर को घिसने से ध्वनि होता है । कोई भी दो धातु के आपस में टकराने से ध्वनि होता है । इसी प्रकार पत्ते हवा से हिलने पर भी ध्वनि होता है । इसी प्रकार मानव गला, तालु, ओंठ, जीभ के संयोग से ध्वनि पैदा करते हैं, इसको राग कहते हैं, यह भी ध्वनि ही है । इसी प्रकार से गाय, बैल, भैंस, बकरी, जीव-जानवर अपने-अपने ढंग से ध्वनि निष्पादित करते हैं । जीव, जानवर, चिड़िया, मेंढक आदि के ध्वनि, उन-उन प्रजाति के लिए भाषा भले ही हो, और प्रकृति के लिए ध्वनि रुप ही स्वीकार हुआ है । वैसे ही, मानव के लिए भी अपनी भाषा अर्थ संगत भले हो, अन्य प्रकृति के लिए ध्वनि होना ही प्रमाणित है । कोई-कोई जीव-जानवर ऐसे हैं, जो मानव के संकेतों का अनुकरण कर लेते हैं । इस प्रकार ध्वनि और भाषा का स्पष्ट स्वरुप मानव को समझ में आता है । अर्थ को इंगित कराने वाले शब्द तरंग को भाषा तरंग कहते हैं । इन दोनों प्रकार की निष्पत्ति स्थली से जुड़े हुए जितने भी विरल पदार्थ रहते हैं, उनके ऊपर उसका दबाव होना पाया जाता है । फलतः वातावरण स्थली अणु समूह के ऊपर जो दबाव आरोपित हुई, और उनमें कम्पन तैयार हुई, इसको हम तरंग कह रहे हैं । इस विधि से तरंग, अणु से अणु को संप्रेषित होते हुए अथवा अनुप्राणित होते हुए दूर-दूर तक पहुँच जाते हैं । ऐसे शब्द और ध्वनि को विद्युतवाहिता पूर्वक प्रसारित करने की क्रिया को रेडियो, टेलीविजन तरंग माना जा रहा है । इस स्वरुप में हमें शब्द तरंग को इसलिए समझना जरुरी है कि हम मानव शब्दों को जितना भी प्रयोग करते हैं, उसकी सार्थकता को अपने नजरिये में बनाया रखना जरुरी है । क्योंकि, हम स्वयं सार्थक होना चाहते हैं । सार्थकता का स्वरुप पहले स्पष्ट हो चुका है । सार्थकता का सूत्र मानव के समझदार होने से,