साथ उसका प्रभाव क्षेत्र बना रहता है । इस प्रभावी क्षेत्र को अत्यल्प दबाव प्रवाह रुप में भी देखा जा सकता है, सर्वाधिक दबाव प्रवाह के साथ भी देखा जा सकता है ।

विद्युत प्रवाह अपने में नियंत्रण के सीमा में कोई हानिप्रद वस्तु नहीं है । न ही यह स्वयं में प्रदूषण युक्त कोई ऊर्जा है । यह विद्युत ऊर्जा अपने में प्रदूषण मुक्त ही है । इसके उपयोग से प्रदूषण पैदा करे या न करे, यह मानव विवेक पर निर्भर है । इस पर अच्छी तरह से अपने को संयत बना लेना सहज सुलभ है । दूसरी ओर इसकी अर्थात् विद्युत ऊर्जा की, विद्युत की उपलब्धि में प्रवृत्त होने की जो आवश्यकता है, यह प्रदूषण मुक्त होना तभी संभव है जब धरती की संतुलित ताप को वरीय बिन्दु के रुप में हम देख पाते हैं । आज इसी दृष्टि की आवश्यकता है । दृष्टि का स्वरुप, मानसिकता ज्ञान, विवेक, विज्ञान के रुप में सार्थक कार्य करता हुआ देखने को मिलता है ।

सहअस्तित्ववादी ज्ञान, विवेक, विज्ञान विधि से हम धरती और मानव के सहअस्तित्व को ध्यान में ला सकते हैं । मानव और धरती का सहअस्तित्व समझ में आने की स्थिति में धरती का स्वास्थ्य वरीय स्थिति में आना, प्रदूषण मुक्ति का उद्देश्य वरीय स्थिति में आना, एक स्वाभाविक प्रक्रिया रहेगी । विकल्प पहले से ही स्पष्ट है । थोड़ा सा ध्यान देने की आवश्यकता है ।

जल प्रवाह बल को हम उपयोग करें न करें, प्रवाह तो हर देश काल में बना ही रहता है । ऋतु संतुलन की सटीकता, इन नदियों के अविरल धारा का स्रोत होना ही समझदार मानव को स्वीकार होता है । इसी के साथ वन, खनिज का अनुपात धरती पर कितना होना चाहिए, इसका भी ध्यान सुस्पष्ट होता है । इसमें ध्यान देने का बिन्दु यही है कि हर देश में विभिन्न स्थितियाँ बनी हुई हैं । हर विभिन्नता में वहाँ का ऋतु संतुलन अपने आप में सुस्पष्ट रहता ही है ।

विकल्प विधियों में अर्थात् प्रदूषण मुक्त विधि से हम विद्युत को जितना पा रहे हैं, उससे अधिक प्राप्त कर लेना आवश्यक है, ऐसे विद्युत से सड़क में चलने वाली जितनी भी गाड़ियाँ हैं, उसके लिए बैटरी विधि से विद्युत को संजो लेने की आवश्यकता है । जिससे छोटी से छोटी, बड़ी से बड़ी गाड़ी चल सके । उसकी उपलब्धि जैसा खनिज तेल उपलब्ध होता है, ऐसा हो सकता है । इसे हर समझदार व्यक्ति स्वीकार कर सकता है । जहाँ तक खेत में चलने वाली गाड़ी, हवा में चलने वाली गाड़ी की बात है, उसके लिए वनस्पति तेल को योग्य बनाकर उपयोग करेंगे । जल पर चलने वाले जहाजों के लिए वनस्पति तेल अथवा सूर्य ऊर्जा और बैट्री विधि तीनों को अपनाये रखेंगे । इस क्रम में मानव का मन सज जाये, मानव एक बार ताकत लगाये तो प्रौद्योगिकी

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