संसार अर्थात् प्रवाह बल के साथ जूझते मानव जाति से प्रकृति के साथ होने वाले पाप कर्म, अपराध कर्म रुक सकते हैं ।
नियति विधि से मानव का प्रकटन, वनस्पति और जीव संसार का प्रकटन होने के बाद हम स्वीकार कर चुके हैं । समझ भी चुके हैं । इसके बावजूद नियति के साथ अपराध में जुड़ गये, इससे छूटना आवश्यक है । जल प्रवाह एवं सूर्य उष्मा, उक्त दोनों स्रोत पर विचार करें तो यह पता चलता है कि मानव प्रयोग करे, ना करे, प्रवाह रहता ही है । सूर्य उष्मा हर समय धरती को छुआ ही रहता है । इसको भले प्रकार से हम समझ सकते हैं । अपने ज्ञान, विवेक, विज्ञान पूर्वक प्रयोग और प्रौद्योगिकी विधि को अपना सकते हैं । तब विद्युत स्रोत, जितना चाहिए मानव को उससे भी कई गुना, हमारे पास उपलब्ध रहना संभावित है ।
हर मानव ऊर्जा स्रोत से धनी रहने की इच्छा रखता है । समझदार मानव उपयोग, सदुपयोग, प्रयोजन सुनिश्चित करने के अर्थ में जीना बना ही रहता है । इससे मानव मानव से विश्वास करने का आधार भी संभावित है । मानव के साथ परस्पर विश्वास विधि से ही उक्त दोनों प्रकार के स्रोत उपयोग कर सकते हैं । इससे ही धरती में मानव, इन नियति विरोधी, मानव विरोधी, प्रकृति विरोधी कार्यक्रम से मुक्त हो सकता है । विरोध के स्थान पर परस्पर पूरक, उपयोगी, सहकारी होना प्रमाणित होता है ।
ऊर्जा क्रियाकलाप के मूल में चुम्बकीय बल संपन्नता का जिक्र प्रयोग हो चुका है । ऐसी चुम्बकीय बल संपन्नता कहाँ से, कैसे? इस मुद्दे पर प्रश्न अध्ययन करने में तत्पर प्रत्येक मानव में होना स्वाभाविक है । इस मुद्दे में यह स्पष्ट हो चुकी है कि व्यापक वस्तु में सम्पूर्ण एक-एक वस्तुयें डूबा, भीगा, घिरा हुआ है । भीगा रहने के आधार पर ऊर्जा संपन्नता, ऊर्जा संपन्नता ही बल संपन्नता, बल संपन्नता चुम्बकीय बल संपन्नता के रुप में, प्रत्येक इकाई में वर्तमान है । इसके प्रमाण में यह स्पष्ट किया जा चुका है कि हर प्रजाति के परमाणु व अणु बंधन, भार, बल संपन्न है ।
व्यापक वस्तु संपूर्ण प्रकृति में वस्तु में पारगामी है । इसलिए प्रत्येक वस्तु व्यापक वस्तु में भीगा रहता है । वस्तु अपने में ऊर्जा प्रकाशन करता हुआ गवाहित होने के उपरान्त ही हम मानव, वस्तु के ऊर्जा संपन्न होने का अनुमान होना पाया जाता है । ऐसे अनुमान के अन्तर्गत ही इसका स्रोत क्या है ? इसका उत्तर व्यापक वस्तु में ही संपूर्ण वस्तुयें रहने का ज्ञान होने के उपरान्त यह पता चला कि व्यापक वस्तु ही मूल साम्य ऊर्जा है । ऊर्जा संपन्नता के रुप में प्रत्येक वस्तु चाहे