वे अणु हो, परमाणु हो, परमाणु अंश क्यों न हो, ये सब इकाईयाँ ऊर्जा संपन्न रहना, इसकी नित्य क्रियाशीलता से बोध हो गया । इस विधि में प्रत्येक इकाई में ऊर्जा संपन्नता, बल संपन्नता की स्वीकृति स्थिति गति के आधार पर संपन्न हुई । ऐसी ऊर्जा संपन्नता प्रत्येक इकाई के ऐश्वर्य में, वैभव रुप में, चुम्बकीय बल संपन्नता, अणु बंधन, भार बंधन रुप में मानव को समझ में आया । यह संपूर्ण वस्तुयें अपने में संपूर्ण रहते हुए, संपूर्ण के साथ अर्थात् धरती के साथ पूरकता आवश्यकता को प्रमाणित करता हुआ देखने को मिलता है । इस मुद्दे पर भी ठोस, तरल, विरल वस्तुयें अपने-अपने जातीय वस्तु के साथ सहयोग, उपयोगिता को प्रमाणित करने में तत्पर होने के रुप में स्थिति गतियों के रुप में स्पष्ट किया गया है । इस विधि से धरती के संपूर्ण वैभव के अंगभूत जितने भी कार्य विन्यास है वह सब सहज अभिव्यक्ति के साथ ही हैं । मानव अपने अद्भुत शिल्प, यांत्रिकता के साथ जितने भी विद्युत धारा को उत्पादित करने के लिए, प्रवाहित करने के लिए उपक्रम करते हैं, वह उपक्रम में प्रवाह मिलता भी है । वह प्रवाह अन्ततोगत्वा धरती में ही समा कर सहअस्तित्व को प्रमाणित कर देता है ।

धरती के ही अंगभूत द्रव्य के रुप में चुम्बकीय द्रव्यों को पाया जाता है । इनके परस्पर यांत्रिकता वश चुम्बकीय धारा की विद्यमानता, उसके विखंडनवश विद्युत धारा, उसके संपूर्ण प्रयोजन के अनंतर, अथवा उपयोग के अनंतर सम्पूर्ण विद्युत धारा धरती में समाकर पुनः चुम्बकीयता के रुप में परिवर्तित हो जाता है । इस प्रक्रिया का जिक्र यहाँ इसलिए किये हैं कि यह विद्युत प्रवाह एक आवर्तनशील प्रक्रिया है । इसलिए इसको आवश्यकता के रुप में बनाये रखना उचित है । इसकी उपलब्धि के लिए उपक्रम विधि को पुनः संयोजन, शाश्वत स्रोतों से जोड़े जाने की संभावना समीचीन है ही । अतएव इस विधि से हम चुम्बकीयता से विद्युत प्रवाह तथा पुनः चुम्बकीयता तक पहुँच जाते हैं । चुम्बकीयता न घटने, न बढ़ने के रुप में, व्यापक वस्तु में संपृक्त संपूर्ण वस्तु को पहचान कर लेना उचित होगा ।

यह तथ्य हमें समझ में आ चुका है कि चुम्बकीयता वस्तु में प्रकट होता है, ऐसे चुम्बकीय द्रव्य को ससम्मुख यांत्रिकीय विधि से निश्चित अच्छी दूरी पर स्थिर करने की स्थिति में इन दोनों की परस्परता में चुम्बकीय धारा बना ही रहता है । चुम्बकीय धारा का मतलब एक दूसरे के साथ मिलने की प्रवृत्ति । इन दोनों वस्तु के बीच कितने भी अणु परमाणु विरल रुप में रहते हैं इन्हें चुम्बकीय प्रभाव क्षेत्र में होना पाया जाता है । इसका विखंडन, इसके विखण्डित क्रम से धारा

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