तारे को देखते हैं । इन्हीं दूरी को धरती पर दो ध्रुवों को अथवा दो शंकुओं को स्थापित कर इन दोनों के मिलन बिन्दु के रुप में सूरज, चाँद, तारे को एक लक्ष्य बना कर इन दोनों के विभिन्न कोणों के आधार पर, इन दोनों के मिलन बिन्दु के आधार पर दूरी का पता लगा देते हैं । इसका नाम है अज्ञात दूरी को ज्ञात करना । दूसरा विधि है, ज्ञात दूरी की ज्ञात करना । ऐसा घटना किसी भी रचना पर ही होना पाया जाता है । रचना ज्ञात रहता है । दूरी अज्ञात रहता है । जैसे धरती में एक किलोमीटर, दो किलोमीटर आदि अनेक प्रकार के हम नाप किया करते हैं । यह धरती स्वयं में एक रचना है । किसी एक शंकु में अथवा धु्रव बिन्दु से नाप शुरु करते हैं, जिसकी दूरी नापना है, वहाँ तक नाप लेते हैं । यह दूरी ज्ञात थी, उसको नाप लिया । नापने की क्रिया का हमको बोध होता है । जिसको नापा, इसका भी बोध होता है । अब नाप क्या चीज है । इसका भी बोध होना आवश्यक है ।
भौतिक तुला में छोटी वस्तुओं को तौलने की जब मानव को आवश्यकता हुई, तब, भौतिक तुला के सूक्ष्मतम तौल को निश्चित बिन्दु मानकर उसके दशांश, शतांश के आधार पर विखण्डन विधि को, गणितीय विधि से, अपनाया । इसी क्रम में आगे बढ़ कर इलेक्ट्रानिकी, प्रौद्योगिकी विधि से एक-एक वर्ग इंच में लाखों विभाजन, लाखों में वर्ग को विभाजित कर संख्या करण कर लिया । इसके उपयोग को इलेक्ट्रानिक रिकार्डर के रुप में प्रयोग किया ही जा रहा है । आगे-आगे पीढ़ी के लिए प्रयोग करने के लिए ये सब उपलब्ध हैं । लम्बाई, चौड़ाई, ऊँचाई को मापने के क्रम में नापने वाला वस्तु किसी न किसी धातु अथवा लकड़ी से बनी रहती है । ऐसी लम्बाई, चौड़ाई, ऊँचाई अथवा सभी लम्बाई, चौड़ाई, ऊँचाई व्यापक में समायी हुई है, यह तथ्य हमें विदित है । एक वस्तु दूसरे वस्तु के बीच में जो कुछ मापते हैं, धु्रव से धु्रव के बीच में व्यापकता को ही मापे रहते हैं । इन दोनों के बीच दूरी को उसकी निश्चित दूरी मान लेते हैं, संख्याकरण कर लेते हैं । स्पष्ट भरोसा रखते हैं । यह ध्यान में लाने का मतलब यही है कि हम कुछ भी मापेंगे दूरी के रुप में, परस्परता के बीच व्यापक वस्तु ही है । इस प्रकार के सभी मापदण्ड के स्वरुप में व्यापक वस्तु को माप कर एक-एक वस्तु माप लिया ऐसा मानते हैं । जैसा लम्बाई, वैसा ही चौड़ाई, वैसा ही ऊँचाई है । जिसमें ही सारी इकाई आती है । जैसा यह धरती व्यापक वस्तु में डूबे, घिरे, भीगे रहने के आधार पर वस्तु के नाम पर वस्तु में ही हर वस्तु को ही मापे रहते हैं । सहअस्तित्व परम सत्य होने के कारण माप का प्रयोजन, प्रक्रिया सफल हो जाता है । इसी क्रम में तौल का कार्य भी सफल हो जाता है । विखण्डन प्रणाली भी मापदण्ड के आधार पर सफल होती है । मानव सौभाग्यशाली होने के आधार पर ही अर्थात् संयमशीलता पूर्वक जीने