मानव कर्म करते समय में स्वतंत्र होने के कारण कर्मफलों से ही सुखी एवं दुखी होता है, जो प्रत्यक्ष है । मानवीयता में किया गया बौद्धिक, सामाजिक तथा प्राकृतिक क्षेत्र में सम्पूर्ण कर्म सुख दायी है । यही अमानवीयता की सीमा में दुखदायी है, जो प्रत्यक्ष है ।
इस वर्तमान में मानव चार प्रकार से गण्य है ।
(1) पुण्यात्मा, (2) पापात्मा, (3) सुखी, (4) दुखी ।
मानव की पाँचों स्थितियों (व्यक्ति, परिवार, समाज, राष्ट्र व अन्तर्राष्ट्र) में पुण्यात्मा, पापात्मा, सुखी एवं दुखी के साथ व्यवहार करने की नीति-रीति में अपनी-अपनी विशेषतायें दृष्टव्य हैं । यथाक्रम से व्यक्ति की सीमा में पूज्य, तटस्थ, संतोष एवं दया भाव; परिवार की सीमा में गौरव, उपेक्षा, सहकारिता एवं सेवा भाव; समाज की सीमा में पुरस्कार, परिमार्जन, सहयोग और सहकार भाव; राष्ट्र की सीमा में सम्मान, दण्ड (सुधार), समाधान की ओर दिशा दर्शन एवं सहयोग भाव; अन्तर्राष्ट्रीय सीमा में संरक्षण, उद्धार, संवर्धन और परिष्करण भाव पूर्ण रीति-नीति पद्धति, विधि-विधान व्यवहार-आचरण-सम्पन्न जीवन ही सफल अन्यथा असफल है । इसलिये यथा
पुण्यात्मा | पापात्मा | सुखी | दुखी | |
व्यक्ति | पूज्य | तटस्थ | संतोष | दयाभाव |
परिवार | गौरव | उपेक्षा | सहकारिता | सेवाभाव |
समाज | पुरस्कार | परिमार्जन | सहयोग | सहकार भाव |
राष्ट्र | सम्मान | दण्ड (सुधार) | आश्वासन | सहयोग भाव |
अन्तर्राष्ट्र | संरक्षण | उद्धार | संवर्धन | परिष्करण भाव |