अवकाश (सम्भावना) से अधिक आवश्यकताओं को अपनाने से ही समस्त प्रकार की दुष्प्रवृत्तियाँ प्रभावशील होती हैं । ये प्रधानतः शोषण के रूप में होती है जो स्व-पर हानिकारक होती है ।
तन, मन, धन रूपी साधन ही अवकाश है ।
असंयत आवश्यकता के लिये साधन का कम हो जाना, संयत आवश्यकताओं में साधन का अधिक हो जाना स्वभाविक है । असंयत आवश्यकता में अपव्यय समाहित है ।
मानव के लिये मानवीयता ही संयमता का सूत्र है ।
मानव में रूप, बल, बुद्धि, पद, धन, कर्म, उपासना, आवश्यकता, अवसर एवं अवकाश समीचीन है ।
क्रिया में न आने वाले आश्वासन, योग्यता से अधिक अधिकार, सिद्धान्त विहीन शास्त्र, आधार विहीन-विधि, दिशा विहीन आचरण ये सब क्लेश के कारण है ।
विधि के आधार तीन प्रकार से गण्य हैं - (1) सत्याधार (2) कर्माधार और (3) विषयाधार ।
सत्याधार को स्पष्ट करने योग्य शास्त्र के आधार पर जो विधि-विधान हैं उससे मानव को सुख, शान्ति, संतोष एवं आनन्द की उपलब्धि है, जो मानवीयता तथा अतिमानवीयता सहज वैभव सूत्र है ।
सत्यता पर आधारित विधि-विधान एवं नीति ही अन्तर्राष्ट्रीयता की एकात्मकता है । यही परस्पर राज्य, राष्ट्रों की एक सूत्रता सहअस्तित्व पूर्ण है । यही व्यक्ति समुदाय वर्गवाद से मुक्त मानव-जीवन का प्रत्यक्ष रूप है ।
कर्माधार पर निर्धारित विधि-विधान सम्पन्न व्यवस्था-प्रक्रिया में स्व-पर लाभालाभ मुक्त विनिमय होता है । यह वर्ग भावना से मुक्त नहीं है ।