उक्त प्रकार से हर वस्तु एक केन्द्र बिन्दु, हर केन्द्र बिन्दु में अनन्त अंश जुड़े रहते हैं । जैसा पहले 45 अंश को एक जुट में दूर-दूर तक फैलाने से एक वस्तु के सभी ओर 8 दिशा हो जाती हैं । इसी प्रकार 90 अंश के विभाजन विधि से 4 दिशा बन जाती है, 180 के विभाजन करने पर 2 दिशा बन जाती है । इस प्रकार दिशा निर्धारण करने के लिए एक वस्तुयें अनेक अंशों के केन्द्र होने की विधि से समझ में आता है । दूसरी विधि यही है, एक वस्तु के सामने दूसरी वस्तु, धरती के सामने सूरज के बारे में पहले से ही हम जानते हैं । इन दोनों विधा से कोण (किसी केन्द्र के) अंशों के आधार पर स्पष्ट होता है । क्योंकि सूरज भी चांद भी अनन्त अंश का ही केन्द्र है । जब कभी सूरज के आधार पर दिशा निर्धारित होगी, सूरज के 90 अंश अथवा 180 अंश पर होगी । 90 अंश दिशा को पहचानने वाले के आधार पर बनता है 180 अंश दिखने के आधार पर बनता है ।

देखने वाले के रुप में मानव को हम पहचान चुके हैं । मानव दृष्टि को जिस ओर दौड़ता है, वह दोनों आँखों के साथ 90 अंश ही बनता है, इसी का नाम दृष्टि पाट है । 90 अंश का शुरुआत बिन्दु में है । यह बिन्दु ठीक दोनों आँखों के पीछे, दोनों चक्षुओं के स्नायु जुड़ने वाली जगह पर ही होती है, यह मेधस तंत्र में ही स्थापित रहता है, भौतिक रासायनिक तंत्र के रुप में स्थापित रहता है । चक्षु तंत्र अपने में रासायनिक रचना तंत्र और जीवंतता सहित मानसिकता के साथ क्रियाशील रहता है । इसका मतलब यह हुआ कि मानव (जीवन) की उपस्थिति में ही दिशा, काल आदि बोध होने की बात किया जा सकता है । यांत्रिक विधि से भी यदि हम दिशा, काल संबंधी क्रिया करते हैं, तो उसमें भी पहले कही हुई सभी क्रियायें मानव से संबंधित रहते ही हैं । अतएव यंत्र प्रमाण के मूल में मानव ही प्रमाण है । स्वयं प्रमाण के मूल में भी मानव ही है, क्योंकि मानव ही प्रमाणित करने वाली इकाई है । किताब प्रमाण के मूल में भी मानव ही प्रमाण है । इस प्रकार मानव का प्रमाण विधि को समझने के क्रम में मानव चक्षु तंत्र को समझना भी आवश्यक रहता है ।

दृष्टि पाट अपने में से हर मानव के चक्षु तंत्र में 90 अंश का विस्तार बनाती है । इसी क्रम में दृष्टि पाट में आने वाली सभी वस्तु निश्चित अच्छी दूरी में रहने पर उसका विस्तार चक्षु तंत्र द्वारा बोध हो पाता है । बोध होने की क्रिया जीवन में ही होती है । चक्षु तंत्र द्वारा भी मानव जीवन और शरीर का अविभाज्य रुप होने के आधार पर समझ में आता है । ऐसी वैभव संपन्नता एक

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