आवश्यक रही । इसके लिए समुचित विधि ज्ञान, विवेक, विज्ञान रुप में स्पष्ट हुई । इस क्रम में रचना के फैलाव को विस्तार के रुप में हम समझने लगे हैं । इस विस्तार को माप दण्डों के आधार पर संख्याकरण भी कर लिया । मील, किलोमीटर आदि संज्ञा से इस धरती के विस्तार मानव के लिए पर्याप्त सामग्री सहित प्रस्तुत है ही । इसी धरती के विस्तार के ऊपरी हिस्से में अटूट ऐश्वर्य प्रस्तुत है ही । सबसे प्रमुख ऐश्वर्य जंगल है । इन सबको बनाये रखने के लिए, ऋतु संतुलन की आवश्यकता पर ध्यान गया, जिसे पहले स्पष्ट कर चुके हैं । इसलिए धरती के विस्तार को समझते हुए, ऋतु संतुलन को बनाये रखने के लिए निष्ठा, प्रवृत्ति, सक्रियता आवश्यक है ।

देश

इस विस्तार को ही हम देश के नाम से जानते हैं । प्रचलित विधि से, अनेक देशों का नाम पहचाना गया है । यदि हम पूरे ईमानदारी से सोचें तो किसी भी एक रचना का विस्तार ही देश होता है । जैसे, यह धरती अपने में एक निश्चित विस्तार संपन्न है ही । धरती स्वयं में, न तो विभाजित है, न विखण्डित है । इस धरती की अखण्डता अपने आप में सबको विदित है । इसके बावजूद अनेक देश, राज्य के नाम पर इसे विभाजित करने का प्रयत्न रहा है । इस धरती का अखण्ड होना, स्वयं में इस धरती पर मानव अपने को अखण्ड समाज के रुप में पहचानने का प्रेरणा भी है । मानव अपने अखण्डता को पहचानने के उपरान्त ही, इस धरती पर मानव के सुरक्षित होने की संभावना उदय होती है । मानव विखण्डित रहते तक धरती के क्षति ग्रस्त होते रहने की संभावना बनी है । अतएव धरती अपने में एक रचना होते हुए, इसी रचना में अविभाज्य रुप में विद्यमान सभी इकाईयाँ, धरती की अखण्डता के साथ जुड़े ही हैं । इसी प्रकार हर रचना, हर धरती की रचना अपने आप में इकाई संपूर्ण है । ऐसे अखण्ड धरती के उदाहरण के रुप में इस धरती को पहचान सकते हैं । धरती पर चारों अवस्था प्रमाणित हो जाय, विकसित धरती का अथवा विकासशील धरती का तात्पर्य यही है । इसी आधार पर इस धरती की रचना और उसकी महिमा, मानव को बोध होता है । अखण्डता विधि से मानव में, से, के लिए अखण्ड समाज, सार्वभौम व्यवस्था अध्ययन व प्रमाणित करने की व्यवस्था मानव के लिए सुलभ हो गयी है ।

इस धरती पर हर वनस्पति, जीव और मानव एक-एक रचना है । ये सब धरती के साथ ही वैभव हैं । ये सभी रचना की एक-एक अवधि हैं । हर धरती, पेड़, पौधे, जीव जानवर, मानव अवधि गत रचना के रुप में प्रमाण हैं । ये सब अपने-अपने अवधि के आधार पर अवधियों को प्रमाणित कर रहे हैं । जैसे धरती का लम्बाई, चौड़ाई, ऊँचाई को मापा जाता है । वैसे ही मानव की

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